Advertisement

क्या स्कूली बच्चे भी दायर कर सकते है सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

कोर्ट भी नागरिक जिस राज्य में निवास करता है उस राज्य से संबंधित हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र याचिका भेज सकता है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम भी पत्र याचिका सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर कर सकता है.

Written By nizamuddin kantaliya | Published : December 13, 2022 8:46 AM IST

नई दिल्ली, किसी भी देश का लोकतंत्र तब मजबूत होता है जब नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहें. नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी वहां की सरकारों पर होती है लेकिन कई बार जब नागरिकों के अधिकार सुरक्षित नहीं रहते ऐसी स्थिति में न्यायपालिका की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है.

Advertisement

न्यायपालिका नागरिकों के अधिकारों और उनके हितों के मामले में सीमित रूप से ही प्रवेश कर सकती है. जब भी नागरिकों के हितों के लिए अदालतें खुद भी प्रसंज्ञान ले सकती है, लेकिन जनहित से जुड़े मामलों में आम नागरिकों को भी पत्र याचिका दायर करने का अधिकार है.

Also Read

More News

क्या होती है पत्र याचिका

पत्र याचिका कोई विशेष याचिका नहीं होकर पत्र ही है जिसे कोई नागरिक सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए न्यायालय को पत्र लिखते है और अपनी परेशानियों को न्यायालय के समक्ष रखते है. ये पत्र एक स्कूली बच्चे से लेकर एक आश्रित बुजुर्ग तक लिख सकते है. पत्र लिखने के लिए उम्र, जाति, धर्म, नौकरी, किसी भी तरह की कोई बाधा नहीं है.

Advertisement

इसमें केवल एक शर्त है कि इसे निजी हित के लिए नहीं बल्कि सार्वजनिक हित की रक्षा करने के लिए दायर किया जाना चाहिए. यदि कोई मुद्दा अत्यंत सार्वजनिक महत्व का है तो कई बार न्यायालय भी ऐसे मामले में स्वतः संज्ञान (Suo Motu) लेती है और ऐसे मामले को संभालने के लिए एक वकील की नियुक्ति की जाती है.

अगर न्यायालय को कोई पत्र मिलता है और उसमें कोई महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया जाता है, तो न्यायालय उसको एक जनहित याचिका के रूप में लेते है और कार्यवाही/सुनवाई करते है.

कहां दायर हो सकती है.

कोर्ट भी नागरिक जिस राज्य में निवास करता है उस राज्य से संबंधित हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र याचिका भेज सकता है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम भी पत्र याचिका सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर कर सकता है.

पत्र के जरिए याचिका दायर करने की सुविधा देश के सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के लिए है. संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत देश का कोई भी नागरिक, संस्था सुप्रीम कोर्ट में इस तरह की याचिका दायर कर सकते है.

हाईकोर्ट के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत पत्र याचिका दायर की जा सकती है. इस अनुच्छेद के जरिए देश के सभी हाईकोर्ट को ये अधिकार है कि वे सार्वजनिक हितों की रक्षा करने के लिए, किसी भी तरह की याचिका पर कार्यवाही कर सकते हैं और नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए कोई भी आदेश पारित कर सकते है.

सार्वजनिक हित जरूरी

अगर कोर्ट को लगता है कि पत्र में उठाये गए मुद्दे जनहित से जुड़े हैं तो पत्र को ही जनहित याचिका (PIL) के रूप में स्वीकार किया जाता है और उस पर सुनवाई होती है.

पत्र याचिका के दायर करने की महत्वपूर्ण शर्त है कि जिस मुद्दे या सार्वजनिक हित के लिए पत्र लिखा गया है क्या पत्र याचिका लिखने से पूर्व उसे मुद्दे या सार्वजनिक हित से जुड़े निकाय, विभाग या सरकार को इस बारे में सूचित किया गया है या नहीं.

क्या लिखा होता है पत्र में

पत्र में ये बताया जाना जरूरी है कि मामला कैसे जनहित से जुड़ा है. जैसे एक नागरिक देश के मुख्य न्यायाधीश को अपने गांव या शहर में गंदगी हटाने की मांग को लेकर पत्र लिख सकता है. गांव या शहर में में उचित सफाई नहीं होने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावित होगा. इसके लिए ये पत्र कोर्ट द्वारा पत्र याचिका के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है.

अगर कोई सबूत या साक्ष्य है तो उसकी कॉपी भी पत्र के साथ लगा सकते हैं. पत्र के जनहित याचिका में तब्दील होने पर संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया जाता है और याचिकाकर्ता को भी कोर्ट में पेश होने के लिए कहा जाता है.

क्या है जरूरी शर्त

सार्वजनिक हित के बिना किसी भी पत्र याचिका को अदालत द्वारा अस्वीकार किया जा सकता है. लेकिन इसके अलावा भी पत्र याचिका को एक जनहित याचिका के तौर पर दर्ज करने की कई शर्तें है.

पत्र याचिका की एक महत्वपूर्ण शर्त ये भी है कि जिस बिंदु या मुद्दे को लेकर पत्र याचिका दायर की गयी है क्या उस मुद्दे को लेकर पत्र लिखने वाले नागरिक ने उससे पूर्व कोई प्रयास किया है.

अगर कोई नागरिक सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखता है, लेकिन अगर उस पत्र से पूर्व उस मुद्दे को लेकर उसने स्थानीय प्रशासन या उससे संबंधित जुड़े लोगों को सूचित नहीं किया. या इससे पहले उस मुद्दे पर कभी कोई मेहनत नहीं की है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय ना केवल उसे पत्र याचिका को अस्वीकार कर सकता है बल्कि इस पर जुर्माना भी लगा सकती है.

जैसे सफाई के इस मामले में न्यायालय ये पूछता है कि क्या पत्र याचिका लिखने से पूर्व नागरिक ने गांव के स्थानीय प्रतिनिधी, स्थानीय तहसीलदार, एसडीएम या जिला कलेक्टर को सफाई कराने को लेकर पूर्व में कोई आवेदन किया है या नहीं.

कैसे होती है अदालत में सुनवाई

पत्र याचिका को जनहित याचिका के रूप में सूचीबद्ध करने पर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन आपको जानकारी देगा. अगर आप समर्थ है और अपनी पैरवी के लिए वकील कर सकते है तो आप वकील के लिए अदालत में अपनी बात रख सकते हैं.

अगर पत्र लिखने वाला यह समझता है कि वह अदालत का सम्मान बनाए रखते हुए अपने मामले की पैरवी कर सकता है ऐसी स्थिति में अदालत में खुद भी अपने मामले की पैरवी कर सकता है.

कई मामलों में पत्र लिखने वाला जरूरतमंद, महिला, बच्चे या दिव्यांग होने की स्थिति में कानून सहायता के लिए भी अदालत से अनुरोध कर सकते है. ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट लीगल एंड सर्विस कमेटी यार विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिए याचिकाकर्ता को निशुल्क वकील मुहैया कराया जाता है.