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बंगाल के गवर्नर के खिलाफ CM ममता बनर्जी की टिप्पणियों पर लगी रोक, जानिए कलकत्ता हाईकोर्ट ने क्या कहकर ये आदेश दिया 

बंगाल के गवर्नर सीवी आनंद बोस और सीएम ममता बनर्जी

कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के खिलाफ अपमानजनक बयान देने से रोक दिया है.

Written By Satyam Kumar | Published : July 17, 2024 11:39 AM IST

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के ऊपर टिप्पणियां करने पर रोक लगाया है. कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने आदेश में 'राज्यपाल' की संवैधानिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए ममता बनर्जी के बयानों को लेकर निषेधाज्ञा जारी की है.  उच्च न्यायालय का ये आदेश राज्यपाल सीवी आनंद बोस द्वारा दायर मानहानि मामले में आया है. राज्यपाल बोस ने सीएम बनर्जी और तीन अन्य के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया है.

कलकत्ता हाईकोर्ट में जस्टिस कृष्णा राव, ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस की अवमानना याचिका पर सुनवाई की.

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अदालत ने बताया, 

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"राज्यपाल एक 'संवैधानिक अधिकारी' हैं और वे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए सीएम ममता बनर्जी द्वारा किए जा रहे व्यक्तिगत हमलों का सामना नहीं कर सकते हैं."

अदालत ने आगे कहा,

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"अदालत यह पाती है कि इस मामले में वादी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए दिए जा रहे बयानों पर निषेधाज्ञा (रोक लगाने के आदेश) देना उचित होगा. यदि इस स्तर पर अंतरिम आदेश नहीं दिया जाता है, तो यह प्रतिवादियों को वादी के खिलाफ अपमानजनक बयान जारी रखने और वादी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने की खुली छूट देगा."

कलकत्ता हाईकोर्ट ने उक्त आदेश के बाद निषेधाज्ञा आदेश को जारी किया.

अदालत ने यह भी बताया कि यदि अंतरिम आदेश नहीं दिया जाता है, तो राज्यपाल को 'अपूरणीय क्षति होगी और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा. अदालत ने प्रतिवादियों को 14 अगस्त तक प्रकाशन और सोशल प्लेटफॉर्म के माध्यम से वादी के खिलाफ कोई भी अपमानजनक या गलत बयान देने से रोका जाता है. अदालत अब इस मामले में अगली सुनवाई 14 अगस्त को करेगी.

ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, सीएम ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल राजभवन की एक महिला कर्मचारी को लेकर बयान दिया था, जिसने राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था.

बता दें कि राज्यपाल को मिली संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत मिली इम्युनिटी की दायरा को तय करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई है.मामला अभी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है.