Calcutta High Court ने 36 साल बाद पति को किया बरी, पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का था मामला
कलकत्ता हाईकोर्ट ने 36 साल पुराने मामले में एक व्यक्ति को अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपों से बरी कर दिया है. कलकत्ता हाई कोर्ट ने हाल में ही बिमल पॉल द्वारा किए गए अपील को स्वीकार किया, जिसमें उसे अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए दोषी ठहराया गया था. यह मामला साल, 1987 बिमल पॉल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (Bimal Paul VS West Bengal Govt.) का है. जिसमें कलकत्ता हाई कोर्ट ने बिमल पॉल को राहत दे दी है.
अपने फैसले में कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति, पेशे से कुम्हार है और वह अपनी पत्नी को अपने काम में हाथ बटाने के लिए लगाता है, तो यह बात प्रताड़ना की श्रेणी में नहीं आएगा. जैसे कुम्हार द्वारा अपनी पत्नी को मिट्टी तैयार करने के लिए कहना.
पति को मिली हाईकोर्ट से राहत
जस्टिस सुभेंदु सामंत अपने फैसले में कहा, यदि गरीब कुम्हार व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी को मिट्टी तैयार करने जैसे कार्य करने के लिए लगाया जाता है, तो इसे आत्महत्या के लिए उकसाने केतहत प्रताड़ित करने की श्रेणी में नहीं आएगा. फैसले में आगे बताया गया कि मृत महिला का विवाह ऐसे व्यक्ति से हुई जो मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए शारीरिक श्रम करते थे. मामले में यह संभव है कि एक परिवार के सदस्यों के बीच अनबन हो सकती है. और पति द्वारा अपनी पत्नी को मिट्टी तैयार करने के कार्य में भी लगाया गया हो. फिर भी यह तथ्य पत्नी के साथ शारीरिक अत्याचार की श्रेणी में नहीं आता. इन टिप्पणियों के साथ, अदालत ने अपीलकर्ता बिमल पॉल की दोषसिद्धि और पांच साल की कैद की सजा को रद्द कर दिया।
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कलकत्ता हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी बिमल पॉल नामक व्यक्ति की सजा रद्द करते हुए की, जिसे अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में सजा मिली थी.
जानें, क्या है पूरा किस्सा?
बिमल पॉल की मृत पत्नी के परिवार वालों ने उसके खिलाफ आत्महत्या के लिए मजबूर करने का शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत में मृतक पत्नी के परिवार ने दावा किया कि उसे दिन में केवल एक बार खाना दिया जाता, और उसके ससुराल वाले उसके साथ दुर्व्यवहार करते थे. पॉल पर यह भी आरोप था कि उसने अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध साझा करना भी बंद कर दिया था. बिमल पॉल के इस व्यवहार के चलते उसकी पत्नी ने खुद को आग लगाकर आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया.
मामले में निचली कोर्ट ने पॉल को साल, 1987 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (क्रूरता) और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत दोषी ठहराया था. जिसे कलकत्ता हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया.