Advertisement

शादी के 7 महीने में ही की दुल्हन की हत्या, बॉम्बे HC ने सास की सजा पर रोक लगाने से किया इनकार 

शादी के 7 महीने में ही की दुल्हन की हत्या, बॉम्बे HC ने सास की सजा पर रोक लगाने से किया इनकार 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने शादी के सात महीने के भीतर अपनी बहू को जलाने के लिए दोषी ठहराई गई सास की सजा को पर रोक लगाने से इंकार किया है.

Written By Satyam Kumar | Published : August 27, 2024 6:12 PM IST

बॉम्बे हाई कोर्ट ने शादी के सात महीने के भीतर अपनी बहू को जलाने के लिए दोषी ठहराई गई सास की सजा को पर रोक लगाने से इंकार किया है. अपने फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि यह एक क्रूर कृत्य है जिसके चलते एक युवा लड़की को अपनी जान गवानी पड़ी. अदालत ने अपराध की गंभीरता व परिस्थितियों को देखते हुए अपील को खारिज किया है. महिला (सास) ने दावा किया किया की फैसले के खिलाफ उनकी अपील अभी लंबित है, ऐसे में अदालत उसकी सजा पर रोक लग

एक क्रूर कृत्य है जिसकी वजह से एक युवा महिला को अपनी जान गवानी पड़ी: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने सास की सजा निलंबन की मांग याचिका पर सुनवाई की. अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह एक क्रूर कृत्य है जिसके चलते शादी के सात महीने के भीतर ही एक महिला को अपनी जान गवानी पड़ी.

Advertisement

अपीलकर्ताओं की ओर से मौजूद वकील राहुल अरोटे ने दावा किया  कि ट्रायल कोर्ट ने शुरू से ही मुवक्किल के खिलाफ अपराध की धारणा के तहत मुकदमा चलाया है. वकील ने दावा किया कि ट्रायल कोर्ट ने निष्पक्ष रूप से आकलन किए बिना ही सबूतों को सही ठहराने की कोशिश की. वकील ने आगे दावा किया कि एफआईआर दुर्भावना से प्रेरित थी और इसमें दहेज की मांग का कोई जिक्र नहीं था.

Also Read

More News

दूसरी ओर अतिरिक्त लोक अभियोजक एएस शालगांवकर ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अपराध की गंभीरता पर जोर देते हुए कहा कि आरोपी ने शादी के सात महीने के भीतर एक युवा दुल्हन की बेरहमी से जान ले ली, इसलिए वह राहत की हकदार नहीं है.

Advertisement

बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने बेटे और उसकी मां को आईपीसी की धारा 302 (हत्या के लिए सजा), 304 ए (लापरवाही से मौत का कारण बनना) और 498 ए (पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) के तहत दोषी ठहराया है, जिसके खिलाफ  मां-बेटे ने अपील दायर है.