BSP MP को थप्पड़ मारने का मामला, इन कारणों से Bombay HC ने एससी-एसटी एक्ट का मुकदमा रद्द करने से किया इंकार
हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक बसपा एमपी (BSP MP) को थप्पड़ मारने से जुड़ा एफआईआर रद्द करने से इंकार करते हुए कहा कि मुकदमे को रद्द करने का कोई आधार नहीं दिखाई पड़ता है. फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay HC) ने कहा कि यह FIR ना ही किसी एकांत की घटना को लेकर किया गया है, ना ही रिकॉर्ड पर रखे गए सबूतों के आधार पर किसी राजनैतिक बदले (Political Vendetta) की भावना से किया प्रतीत होता है. बता दें कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत हुई यह एफआईआर 17 जुलाई, 2024 के दिन बसपा के पार्टी मीटिंग में दलित एमपी पर हाथ उठाने से जुड़ा है. शिकायत के आधार पर पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट की धारा 3(1)(s), आईपीसी की धारा 115 (2), 3(5) और धारा 356 के तहत FIR दर्ज किया है. आरोपियों ने इसी मामले में दर्ज कराए गए एफआईआर को रद्द करने की मांग की.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के मुकदमे को रद्द करने से इंकार
बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस नीला गोखले और जस्टिस सारंग वी कोतवाल की पीठ ने एससी-एसटी एक्ट से जुड़ी FIR रद्द करने की मांग को सुना. अदालत ने बचाव पक्ष के वकील के दलीलों को इंकार करते हुए कहा कि यह FIR ना ही किसी एकांत की घटना को लेकर किया गया है, ना ही किसी राजनैतिक बदले की भावना से किया प्रतीत होता है.
अदालत ने कहा कि पुलिस द्वारा जब्त किए गए सीसीटीवी फुटेज और गवाहों के बयान आपस में मेल खाते हैं, जो FIR को पुष्ट करता करता है. साथ ही याचिकाकर्ता ने बासपा एमपी के खिलाफ सार्वजनिक तौर से हाथापाई करते हुए उसे लेकर आपत्तिजनक शब्द कहे हैं, इसलिए उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया.
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क्या कहता है एससी- एसटी एक्ट की धारा 3 (2)?
फैसले में FIR को संशोधित करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि यह घटना एससी-एसटी एक्ट की धारा 3(1) अपमानित करने के इरादे से किया गया कार्य, के साथ अधिनियम की धारा 3(2) को भी आकर्षित करती है. बता दें कि मामले में बासपा एमपी के साथ पब्लिक मीटिंग में थप्पड़ मारा गया था.
अधिनियम की धारा 3(2) के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति का नहीं है, और वह अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति या उसकी संपत्ति के खिलाफ कोई अपराध करता है, तो इस SC-ST act की धारा 3(2) के अनुसार, उक्त अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता के अनुसार दंडित किया जा सकेगा. इस धारा के अनुसार, दोष सिद्ध होने पर व्यक्ति पर जुर्माना भी लगाया जा सकेगा.
अदालत ने फैसले में कहा कि इस मामले में आरोपी के खिलाफ आईपीसी धारा 323 के तहत कार्रवाई की जाएगी, जो किसी व्यक्ति को जान-बूझकर चोट पहुंचाने के लिए कोई कृत्य करता है. इस धारा में दोष सिद्ध होने पर एक साल जेल और एक हजार रूपये जुर्माना लगाया जा सकता है.