Bombay High Court: उद्धव ठाकरे के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति को लेकर दायर PIL खारिज
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आय से अधिक संपंति रखने का आरोप लगाते हुए जाचं की मांग करने वाली जनहित याचिका को Bombay High Court ने खारिज कर दिया है.
स्थानीय नागरिक गौरी भिडे द्वारा इस जनहित याचिका में दावा किया गया था कि बृहन्मुंबई नगर निगम में कथित भ्रष्टाचार और ठाकरे परिवार की संपत्ति में अचानक वृद्धि आपस में जुड़ी हुई है.
जस्टिस धीरज सिंह ठाकुर और जस्टिस वाल्मीकि एसए मेनेजेस की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि बीएमसी में कथित भ्रष्टाचार और ठाकरे परिवार की संपत्ति में वृद्धि का कोई सीधा संबंध नहीं है.
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याचिका में दावें
याचिकाकर्ता गौरी भिडे ने याचिका में दावा किया उद्धव ठाकरे, उनके बेटे आदित्य और पत्नी रश्मि ने अपनी आय के आधिकारिक स्रोत के रूप में कभी भी किसी सेवा, पेशे या व्यवसाय का खुलासा नहीं किया, लेकिन उनके पास मुंबई और रायगढ़ जिलों में करोड़ों की संपत्ति हैं.
याचिका में ठाकरे परिवार द्वारा चलाए जाने वाले 'मार्मिक' और 'सामना' पत्रो को हुए लाभ पर भी सवाल खड़े किए गए है. याचिका में कहा गया कि लॉकडाउन के दौरान जब अन्य प्रिंट मीडिया को बेहद भारी नुकसान उठाना पड़ा है, इसी अवधि के दौरान इन पत्रों में ₹42 करोड़ का भारी कारोबार दिखाया गया और 11.5 करोड़ का लाभ भी बताया गया है.
शिकायत पर कार्रवाई नहीं
याचिकाकर्ता ने याचिका में दावा किया था कि इस मामले में उसने इसकी शिकायत मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में भी की है.
उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं किए जाने पर उसने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है.
याचिका में गौरी ने उनके द्वारा दायर की गई शिकायत पर एजेंसियों को जांच करने के आदेश देने और हर माह अदालत में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश देने की मांग की.
उद्धव ठाकरे ने किया विरोध
ठाकरे की ओर से जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा गया कि जनहित याचिका के लिए केवल एक पेपर प्रकाशन के मुनाफे को आधार बनाया गया है.
ठाकरे की ओर से अधिवक्ता ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि एक पेपर प्रकाशन मुनाफा कमा रहा था इसका मतलब यह नहीं होगा कि प्रकाशन में भ्रष्टाचार था.
अधिवक्ताओं ने कहा कि किसी भी अदालत में हस्तक्षेप करने के लिए एक संज्ञेय अपराध होना चाहिए, पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करानी होगी.
शिकायत पर यदि कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो मजिस्ट्रेट के समक्ष एक निजी शिकायत दर्ज करनी होती है; यदि मजिस्ट्रेट भी संज्ञान नहीं लेता है तो यह दिखाना होगा कि सत्ता में बैठा व्यक्ति जांच को प्रभावित कर सकता है तभी हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है.
पुलिस ने शुरू की जांच
सुनवाई के दौरान ही मुख्य लोक अभियोजक ने मुंबई पुलिस की ओर से अदालत को बताया कि आर्थिक अपराध शाखा ने जनहित याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों की प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है.