अदालत को गुमराह करने पर Bombay High Court ने दो वकीलों को दिया ऐसा आदेश, मांगनी पड़ी माफी
नई दिल्ली: बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) की औरंगाबाद पीठ (Aurangabad Bench) में एक मामले पर सुनवाई हो रही थी जिसके चलते दो जूनियर वकीलों के खिलाफ, 'अदालत को गुमराह' करने के लिए एक ऐसा आदेश दिया गया कि उन्हें लिखित में माफी मांगनी पड़ी।
बता दें कि मामला जमानत का था और हाईकोर्ट ने दोनों वकीलों और मुवक्किलों के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई (Disciplinary Action) का आदेश दिया था। अदालत का ऐसा मानना था कि इन वकीलों और उनके क्लाइंट्स ने कानून व्यवस्था और प्रोफेशन का मजाक उड़ाने की कोशिश की है।
वकीलों पर कोर्ट को गुमराह करने का आरोप
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह मामला बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ में न्यायाधीश एस जी मेहारे (Justice SG Mehare) ने कहा है कि यह मामला सिद्ध करता है कि वादी (Litigant) किस तरह कानून के इस व्यवसाय पर हावी हो गए हैं और वकीलों ने बिना अपने करियर की चिंता किये सिर्फ अपने मुवक्किल को खुश करने के लिए, उन्हें परिणाम-उन्मुख सेवाएं (result oriented services) दी हैं।
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उन्होंने यह भी कहा है कि अदालत को गुमराह करने में इन वकीलों ने सारी हदें पार कर ली हैं; यह एक बहुत गंभीर विषय है जिसमें यह समझना बहुत मुश्किल है कि किसपर विश्वास किया जाए और किसपर नहीं। जुस्तके मेहारे ने कहा है कि यह गलत है कि जूनियर वकील अपने सीनियर्स के मार्गदर्शन में इस तरह की हरकतें कर रहे हैं।
जानें क्या था मामला
बता दें कि पीठ लखन मिसल की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसपर मर्डर और गैर-इरादतन हत्या (Culpable Homicide) का आरोप लगा था। सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष यह बात अचानक बताई गई कि आईविट्निस कीतरफ से एक ऐफिडेविट दायर की गई है और उन्हें जमानत से कोई आपत्ति नहीं है।
न्यायाधीश एस जी मेहारे ने यह नोटिस किया कि यह सिर्फ एक चाल है जिससे अधिवक्ता अभयसिंह भोसले आरोपी की जमानत चाहते हैं। यह उनकी तरफ से अदालत को गुमराह करने की कोशिश थी और उन्होंने दूसरी पार्टी को अंधेरे में रखकर यह झूठा कदम उठाया था।
अधिवक्ता ने यह कहा भी कि उनकी तरफ से गलती हो गई थी लेकिन अदालत ने इसे गलती नहीं माना और काहा कि यह उन्होंने जानबूझकर किया है। बता दें कि ये अधिवक्ता अपने सीनियर के साथ काम कर रहे थे और दोनों को इस बारे में पूरी जानकारी थी।
अधिवक्ता के खिलाफ निर्देश
अदालत ने इस मामले में अधिवक्ताओं की हरकत गलत है और इसके लिए इनके खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई होनी चाहिए और इसकी सूचना गोवा और महाराष्ट्र के बार काउंसिल की अनुशासनिक समिति (The Disciplinary Committee of the Bar Council of Maharashtra and Goa) को दी जानी चाहिए।
इस आदेश के बाद दोनों वकीलों ने माफीनामा सबमिट किया और अपनी गलती मानी; उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि वो अपने निर्देश को वापस ले लें और बार काउंसिल को यह मामला रेफर न करें, इससे उनका पूरा करियर खराब हो सकता है।
उनके माफीनामा को अदालत ने माना है और पूछताछ और कार्रवाई के अपने निर्देश को उन्होंने वापस लिया है।