'Blinkit' vs 'Blinkhit': Supreme Court ने ट्रेडमार्क मामले में Karnataka High Court के ऑर्डर में हस्तक्षेप से किया इनकार
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने ई-कॉमर्स डिलीवरी सर्विस स्टार्टअप 'ब्लिंकिट' (Blinkit) के खिलाफ दर्ज ट्रेडमार्क उल्लंघन के मामले में दिए गए कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
दरअसल शिकायतकर्ता, बैंगलोर का एक स्टार्टअप 'ब्लिंखिट' (Blinkhit) है और इस स्टार्टअप ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। बता दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने मामले में 'ब्लिंकिट' को राहत दी।
Karnataka HC के आदेश में हस्तक्षेप से SC ने किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना (Justice Sanjiv Khanna) और न्यायाधीश एसवी भट्टी (Justice SV Bhatti) की पीठ ने इस मामले में यह बात नोट की है कि केस फाइल्स और रिकॉर्ड्स के अनुसार 'ब्लिंखिट' का कुछ टर्नओवर नहीं है।
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शिकायतकर्ता के वकील से न्यायाधीश संजीव खन्ना का ने कहा कि उनकी कंपनी का 'जीरो टर्नओवर' है और उन्होंने अपनी वित्तीय स्थिति (Financials) का भी उल्लेख नहीं किया है। कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया था।
कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला
इस मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ब्लिंकिट को बचाया था और ब्लिंखिट के पक्ष में पास किये गए अस्थायी निषेधाज्ञा (Temporary Injunction) को रद्द कर दिया था। कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एसआर कृष्ण कुमार (Justice SR Krishna Kumar) का यह कहना था कि दोनों पक्षकारों द्वारा की जाने वाली कथित सेवा की प्रकृति पूरी तरह से अलग थी और पूरी तरह से अलग गतिविधि करने के लिए सिर्फ ट्रेडमार्क पंजीकृत करना अस्थायी निषेधाज्ञा का आधार नहीं हो सकता है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह भी बात नोट की थी कि ब्लिंखिट ने 2016 में अपना ट्रेडमार्क रजिस्टर करवा लिया था लेकिन तब से लेकर जब तक ट्रायल कोर्ट में मुकदमा दर्ज नहीं हुआ, उन्होंने इसे कभी इस्तेमाल नहीं किया।
जानें क्या था पूरा मामला
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने ज़ोमैटो (Zomato) के स्वामित्व वाली डिलीवरी सर्विस ब्लिंकिट के खिलाफ ब्लिंखिट के ट्रेडमार्क का उल्लंघन करने से रोकने हेतु एक अस्थायी निषेधाज्ञा जारी की थी जिसके खिलाफ ब्लिंकिट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
उनका यह दावा था कि अदालत का यह आदेश मनमाना था क्योंकि प्रतिवादी तथ्यों को दबाने के लिए गुनहगार थे। यह बहस हुई थी कि बिना इस्तेमाल के सिर्फ पंजीकरण कराना बेकार है और दोनों कंपनियों के काम एक दूसरे से बहुत अलग हैं।