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Bilkis Bano की याचिका एक 'आपराधिक' नहीं 'प्रशासनिक कानून' का मामला है: Supreme Court

Supreme Court of India

बिलकिस बानो के दोषियों को पिछले साल गुजरात सरकार के आदेश पर जेल से रिहा कार दिया गया था जिसके खिलाफ बिलकिस बानो ने उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की; कई अन्य लोगों ने भी रेमिशन के खिलाफ याचिकाएं दायर की। सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी की है कि यह याचिका एक 'आपराधिक' नहीं 'प्रशासनिक कानून' का मामला है...

Written By Ananya Srivastava | Published : August 10, 2023 12:30 PM IST

नई दिल्ली: 2002 में गुजरात दंगों के दौरान गर्भवती बिलकिस बानो का कुछ लोगों ने गैंग-रेप किया था और उनके चौदह परिवारवालों का मर्डर कर दिया था जिसमें उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। इस मामले में पिछले वर्ष सभी ग्यारह दोषियों को गुजरात सरकार ने निर्देश पर रिहा कर दिया गया था। रेमिशन के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर फिलहाल उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही है।

सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) और न्यायाधीश उज्ज्वल भुइंया (Justice Ujjal Bhuyan) की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। 8 अगस्त, 2023 को इस पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ही पिछले साल के उस ऑर्डर पर परासन उठाये थे जिसने गुजरात सरकार को रेमिशन देने की अनुमति दी थी।

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कल, 9 अगस्त, 2023 को अदालत में दोषियों के पक्ष ने यह सवाल उठाये कि क्या उनके खिलाफ दायर जनहित याचिकाएं (PILs) अनुरक्षणीय (Maintainable) हैं या नहीं। इसपर पीठ ने एक अहम टिप्पणी की है।

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ये एक आपराधिक नहीं प्रशासनिक कानून का मामला है: सर्वोच्च न्यायालय

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जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस भुइंया की पीठ का समक्ष सुनवाई के दौरान दोषियों के वकील की तरफ से यह सवाल पूछे गए थे कि दोषियों के जल्दी रिहा होने के खिलाफ दायर जनहित याचिकाएं उच्चतम न्यायालय के सामने अनुरक्षणीय होती हैं या नहीं।

इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिलकिस बानो मामले में दोषियों की जल्दी रिहाई के खिलाफ दायर पीआईएल की अनुरक्षणीयता इस बात पर निर्भर करती है कि उनका रेमिशन जिस प्रशासनिक नीति पर आधारित है, वो जनता को कितना प्रभावित करता है।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यहां याचिकाकर्ता दोषसिद्धि या सजा को नहीं बल्कि एक प्रशासनिक आदेश को चुनौती दे रहे हैं; उन्होंने समझाने का प्रयास किया कि अगर कोई नीति जनता को प्रभावत करती है, तो उसके खिलाफ दायर जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया जा सकता है। आगे जस्टिस भुइंया ने बोला कि यह एक आपराधिक मामला नहीं है बल्कि यह प्रशासनिक कानून से जुड़ा एक मामला है।

Justice Nagarathna ने सुप्रीम कोर्ट के मई, 2022 के ऑर्डर पर उठाये सवाल

जस्टिस नगरत्ना ने 8 अगस्त, 2023 की सुनवाई के दौरान यह सवाल किए थे कि गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दिए बिना एक याचिका में उनके ऑर्डर को खारिज किस तरह किया जा सकता है। साथ ही, उन्होंने यह भी पूछा कि जब उच्च न्यायालय ने उनके मेल को सुनकर याचिका को खारिज कर दिया था तो सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 32 के तहत इसे कैसे दायर किया गया और परमादेश याचिका (Mandamus Writ) कैसे जारी हुई?