Caste Census in Bihar: Patna High Court के आदेश के खिलाफ Supreme Court पहुंची बिहार सरकार
नई दिल्ली: जाति आधारित गणना पर पटना हाईकोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के आदेश के खिलाफ बिहार की जदयू-राजद सरकार ने सुप्रीीम कोर्ट में याचिका दायर की है.
पटना हाई कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए बिहार सरकार ने पटना हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश को रद्द करने की मांग की है.
पटना हाई कोर्ट ने 4 मई को जातीय जनगणना पर रोक लगाते हुए मामले की अगली सुनवाई के लिए 3 जुलाई 2023 की तारीख तय की थी.
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हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि रोक केवल जनगणना पर नहीं बल्कि आगे के डेटा संग्रह के साथ-साथ राजनीतिक दलों के साथ सूचना साझा करने पर भी रहेगी.
इस मामले में शीघ्र सुनवाई को लेकर बिहार सरकार की ओर से दायर की गयी इंट्रोलोकेट्री एप्लीकेशन को भी खारिज कर दिया गया है.
सरकार चाहती है जाति आधारित गणना
सरकारी आदेशो के बाद बिहार में 7 जनवरी 2023 से जातीय सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू कि गयी थी, इस सर्वे को करवाने की जिम्मेदारी सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट (जीएडी) को सौंपी गई थी.
सरकार के इस जाति आधारित गणना को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी, पटना हाई कोर्ट ने 3 दिनों की सुनवाई के बाद बिहार सरकार से राज्य में चल रहे जातीय सर्वेक्षण प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से रोकने और जितनी भी जानकारी अब तक दर्ज हुई है, उसे सुरक्षित रखने का आदेश दिया था.
हाईकोर्ट में बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना का समर्थन करते हुए कहा था कि वह जाति आधारित गणना को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है.
जल्द सुनवाई की मांग
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी याचिका के जरिए बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना पर लगी रोक के मामले में जल्द सुनवाई की अपील की है. सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील में कहा गया कि हाईकोर्ट ने अंतरिम स्तर पर मामले की योग्यता की गलत जांच की और राज्य की विधायी क्षमता में हस्तक्षेप किया है.
बिहार सरकार के महाधिवक्ता पी के शाही ने इंट्रोलोकेट्री एप्लीकेशन दायर करते हुए मामले में जल्द सुनवाई का अनुरोध किया था, जिस पर अदालत ने 9 मई को सुनवाई के बाद याचिका को खारिज कर दिया था.
सरकार को वित्तिय हानि
अपील में बिहार सरकार ने कहा है कि सर्वे शुरू होने के 10 महीने बाद याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का रुख किया है. और हाईकोर्ट ने भी इस तर्क को गलत तरीके से स्वीकार किया है कि सर्वेक्षण एक जनगणना थी, और इसके बारे में व्यक्तिगत जानकारी विधायकों के साथ साझा की जाएगी.
अपील में कहा गया है कि "गाँव, ब्लॉक, जिला या राज्य स्तर पर डेटा का संग्रह अधिनियम के तहत परिभाषित जनगणना नहीं हो सकता है"
अपील में यह भी कहा गया है कि यदि सर्वेक्षण को इस स्तर पर रोक दिया जाता है, तो राज्य को भारी वित्तीय लागत वहन करनी पड़ेगी.
सर्वे में अंतराल से होगा नुकसान
याचिका में सरकार की ओर से दावा करते हुए कहा गया है कि अंतरिम स्तर पर राहत और निष्कर्ष अंतिम राहत जितना ही अच्छा है और रिट याचिका वास्तव में निष्फल हो गई है. राज्य ने पहले ही कुछ जिलों में 80% से अधिक सर्वेक्षण कार्य पूरा कर लिया है और इस गणना को पूरा करने में कोई नुकसान नहीं होगा.
राज्य सरकार ने कहा है कि हाईकोर्ट के आदेश के चलते सर्वेक्षण पूरा करने में अंतराल होने पर सर्वेक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा क्योंकि यह एक समसामयिक डेटा नहीं होगा.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट जनवरी में ही जातिगत जनगणना शुरू करने के राज्य के फैसले को चुनौती देने वाली तीन जनहित याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया था.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने की छूट दी थी. जिसके बाद याचिकाकर्ताओ ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.