सुप्रीम कोर्ट से Rooh Afza को बड़ी राहत, ट्रेडमार्क उल्लंघन मामले में Dil Afza की बिक्री पर रोक बरकरार
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट से भी प्रसिद्ध शरबत Rooh Afza की निर्माता कंपनी Hamdard Foundation को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रेडमार्क उल्लंघन के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा Dil Afza शरबत की बिक्री पर लगाई गयी रोक के आदेश को बरकरार रखते हुए दायर अपील को खारिज कर दिया है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल रूह अफजा के निर्माता कंपनी हमदर्द फाउंडेशन द्वारा ट्रेडमार्क उल्लंघन को लेकर दायर किए मुकदमे Dil Afza शरबत के निर्माण, वितरण सहित नाम के प्रयोग करने पर रोक लगा दी थी.
Hamdard Foundation ने Dil Afza शरबत निर्माताओं ट्रेडमार्क उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कहा था कि यह भ्रामक रूप से इसके Rooh Afza के समान है.
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हस्तक्षेप नही करेंगे
Chief Justice of India DY Chandrachud, Justice PS Narasimha और Justice JB Pardiwala की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि "रूह अफज़ा पूरे भारत में एक अच्छी तरह से स्थापित प्रतिष्ठान है, लेकिन आप इसके समान नाम से पहले आप कुछ दवाएं बेचते हैं और 2020 में आप शरबत बेचना शुरू कर देते हैं.
पीठ ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला सही था और वह हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप नही करेंगे और याचिका को खारिज कर रहे है.
सुनवाई के दौरान Justice Narasimha ने पूछा कि कोई अगर रूह अफजा मांगे और बदले में दिल अफजा मिल जाए तो क्या फर्क पड़ेगा.
"This drink is century-old and it has acquired a character...a structural phonetic and visual mark has to be compared as a whole...Division Bench [of High Court] has found circular rings in bottle which gives away dishonest intentions...They are selling since 2020 and we are selling since 1907...this looks like a variant of Rooh Afza...They are riding on my goodwill."
जिसके जवाब में Hamdard Foundation के अधिवक्ताओं ने कहा कि "यह पेय एक सदी से अधिक पुराना है और इसे वे वर्ष 1907 से बेच रहे है.
अधिवक्ताओं ने कहा कि Rooh Afza ने लंबे समय से एक चरित्र को प्राप्त कर लिया है, खंडपीठ ने भी बोतल में गोलाकार छल्ले पाए हैं जो बेईमान इरादों को दूर करते हैं.
अधिवक्ताओं ने कहा कि प्रतिवादी अपनी सामग्री को 2020 से बेच रहे हैं और हम 1907 से बेच रहे हैं...यह रूह अफजा का एक प्रकार लगता है...और सालो से बनाई गयी प्रतिष्ठा के सवार लाभ कमाना चाहते है.
क्या था वाद
Hamdard Foundation ने Dil Afza शरबत निर्माताओं पर ट्रेडमार्क उल्लंघन का आरोप लगाते दिल्ली हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया था.
इस मुकदमें में कहा गया कि Sadar Laboratories द्वारा बेचा जा रहा Dil Afza उनके उत्पाद की नकल है और यह भ्रामक रूप से इसके Rooh Afza के समान है.
हमदर्द फाउंडेशन ने हाईकोर्ट में दलीले पेश की थी कि प्रतिवादियों ने 'दिल' और 'रूह' शब्दों के समान शब्दों का प्रयोग करते हुए इसके ट्रेडमार्क का उल्लंघन किया है.
यह भी कहा गया कि जिन बोतलों में दोनों उत्पाद बेचे जा रहे हैं, वे एक जैसी हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस तथ्य को स्वीकार किया था कि 'रूह', जिसका अर्थ है आत्मा, और 'दिल' का अर्थ के शब्दों के बीच स्पष्ट संबंध है.
"इस प्रकार यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि एक व्यक्ति जो दिल AFZA के लेबल को देखता है, वह रूह AFZA के लेबल को याद कर सकता है क्योंकि 'AFZA' शब्द आम है और 'रूह' और 'DIL' शब्दों का अर्थ, जब अनुवाद किया जाता है अंग्रेजी में, आमतौर पर संयोजन के रूप में उपयोग किए जाते हैं.
एक कहानी है रूह अफ्जा
रूह अफजा यूनानी हर्बल चिकित्सा के एक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने ठीक 113 साल पहले गाजियाबाद में इजाद किया था. वैसे इसकी शुरूआत वर्ष 1906 में हुई थी जब उन्होंने पुरानी दिल्ली के लाल कुआं बाजार में हमदर्द नामक एक क्लीनिक खोली गयी.
वर्ष 1907 में दिल्ली में भीषण गर्मी और लू से एक ही दिन में सैकड़ो लोग बीमार होने लगे थे, उनके उपचार के लिए हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने Rooh Afza के रूप में दवा तैयार की थी.
लू और गर्मी से बचाने में हमदर्द का Rooh Afza कमाल का साबित हुआ और इसके साथ ही एक छोटा सा क्लीनिक केवल एक दवाखाना नही होकर एक बड़ी कंपनी बन गई थी.
वर्ष 1922 में अब्दुल मजीद के निधन के बाद, उनके 14 साल के बेटे अब्दुल हमीद ने बिज़नेस संभाल लिया और इसे नई ऊंचाइयों पर ले गए.
1947 में देश के विभाजन के बाद हमदर्द कंपनी भी दो हिस्सों में बंट गई, विभाजन के समय इसके मालिक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट और ऑफिस को बांग्लादेश में अपने कर्मचारियों के भरोसे छोड़कर पाकिस्तान चले गए.
हकीम हाफिज अब्दुल मजीद बड़े बेटे अब्दुल हमीद ने मां के साथ हिंदुस्तान में ही रह गए. अब्दुल हमीद के दो बेटे हुए अब्दुल मोईद और हम्माद अहमद हुए.
हमदर्द, एक स्थानीय दवा निर्माता से रिफ्रेशमेंट कंपनी और फिर साल 1953 में वक्फ’ (Waqf) नाम का एक राष्ट्रीय कल्याण संगठन बन गया.