वेदांता को Supreme Court से बड़ा झटका, वेदांता विश्वविद्यालय के लिए 6,000 एकड़ भूमि का अधिग्रहण रद्द
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए देश के प्रसिद्ध उद्योग घराने वेदांता के विश्वविद्यालय के लिए उड़ीसा में आवंटित 6 हजार एकड़ जमीन के अधिग्रहण को रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही भूमि अधिग्रहण को लेकर उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा 2010 में दिए गए फैसले को बरकरार रखते हुए अनिल अग्रवाल फाउंडेशन पर 5 लाख रूपये का हर्जाना भी लगाया है.
पीठ ने अपने फैसले में वेदांता को 6 सप्ताह के भीतर ओडिशा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण कार्यालय में यह राशि जमा कराने के आदेश दिए है. Justice MR Shah और Justice Krishna Murari की पीठ ने इस मामले पर सभी पक्षो को सुनने के बाद 21 सितंबर, 2022 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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राज्य सरकार को फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उड़ीसा सरकार द्वारा जमीन के आवंटन और अधिग्रहण में की गई कार्यवाही पर सवाल खड़े करते हुए राज्य सरकार के खिलाफ कई सख्त टिप्पणीयां की है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहित भूमि से दो नदियों के पार जाने और इससे आवंटन से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर सही निर्णय नहीं लेने के लिए राज्य सरकार को फटकार लगाई है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पर्यावरणीय पहलुओं पर राज्य सरकार द्वारा दिमाग का प्रयोग नहीं किया गया.कोर्ट ने कहा कि नदियों का रखरखाव आदि लाभार्थी कंपनी को कैसे सौंपा जा सकता है.
सार्वजनिक हित के खिलाफ
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सरकार का इस तरह का कदम सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत का उल्लंघन करने के साथ ही बड़े पैमाने पर निवासियों के साथ-साथ पास के अभयारण्य में वन्यजीवों को भी प्रभावित करेगा.
पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा देखे प्रस्तावित विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए बड़े पैमाने पर निर्माण से वन्यजीव अभयारण्य, पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और इलाके में पारिस्थितिक पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा.
पीठ ने कहा कि वन्यजीव अभयारण्य की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है और भूमि आवंटन और निर्माण पूरे इको सिस्टम और इलाके में पारिस्थितिक वातावरण को प्रभावित कर सकता है.
पीठ ने सरकार के रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह प्रशंसनीय नहीं है कि सरकार ने एक ट्रस्ट/कंपनी के पक्ष में इस तरह के अनुचित पक्ष की पेशकश क्यों की.
उड़ीसा हाईकोर्ट ने अपने 2010 के फैसले में आदेश दिया था कि अधिग्रहीत भूमि का कब्जा संबंधित भूस्वामियों को लौटाते हुए उन्हे बहाल किया जाए.