Bhopal Gas Tragedy:30 साल बाद याचिका के आधार पर पीड़ितों का मुआवजा बढाने से Supreme Court का इंकार
नई दिल्ली: Supreme Court की संविधान पीठ ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए मुआवजे की राशि बढ़ाने को लेकर केंद्र की ओर से दायर क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया है.
जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता में गठित संविधान पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अगर हम केन्द्र की इस याचिका को स्वीकार करते है तो पेंडोरा बॉक्स’ खुल जाएगा. पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में पहले आना चाहिए था न कि तीन दशक के बाद.
पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक के पास मौजूद 50 करोड़ रुपए का इस्तेमाल लंबित दावों को मुआवजा देने के लिए करे. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समझौते को सिर्फ फ्रॉड के आधार पर रद्द किया जा सकता है और केन्द्र सरकार ने समझौते में फ्रॉड को लेकर कोई दलील पेश नही की है.
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गौरतलब है कि इस क्यूरेटिव याचिका के जरिए केन्द्र सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे के रूप में 7400 करोड़ रुपए देने की मांग की थी.
गैस त्रासदी मामले में 7 जून 2010 को भोपाल की एक अदालत ने यूसीआईएल के 7 अधिकारियों को 2 साल की सजा सुनाई थी. जिसके बाद केंद्र सरकार ने यह याचिका दिसंबर 2010 में दायर की थी.
याचिका में केन्द्र की ओर से दलील दी गई थी कि जहरीली गैस रिसाव के कारण होने वाली बीमारियों के चलते पीड़ितो को लंबे समय इलाज के लिए संघर्ष करना पड़ा है और उन्हे लंबे समय ईलाज के लिए पर्याप्त मुआवजे की जरूरत हैं.
सुनवाई के दौरान यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने मामले से जुड़े कई षडयंत्र सिद्धांतों का भी हवाला दिया. उन्होंने कहा कि सिद्धांत में यह दावा किया गया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने समझौते से पहले पेरिस के एक होटल में UCC अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन से मुलाकात की थी और कहा था कि एंडरसन तब तक अपने पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे.