नॉन-मेम्बर को पानी न पीने देना पड़ा बार एसोसिएशन को महंगा! मद्रास उच्च न्यायालय ने दिया ऐसा निर्देश
नई दिल्ली: मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने गुरुवार को एक फैसला सुनाया है जिसमें उन्होंने मद्रास बार एसोसिएशन (Madras Bar Association) को पांच लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया है। बता दें कि यह इसलिए हुआ है क्योंकि बार एसोसिएशन ने एक नॉन-मेम्बर को पानी नहीं पीने दिया।
मद्रास बार एसोसिएशन (MBA) से जुड़ी एक ग्यारह साल पुरानी घटना है जिसमें उन्होंने वरिष्ट अधिवक्ता एलीफेंट जी राजेन्द्रण के बेटे को इसलिए एसोसिएशन ऑफिस के परिसर से पानी नहीं पीने दिया क्योंकि वो बार एसोसिएशन के सदस्य नहीं थे। इसी के चलते अब अदालत ने बार एसोसिएशन को यह निर्देश दिया है कि वो वरिष्ट अधिवक्ता एलीफेंट जी राजेन्द्रण को मुआवजा दें।
अदालत ने कहा 'छुआछूत' है इस घटना का आधार
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 2012 में घटित इस घटना पर एक याचिका दायर की गई थी जिसके आधार पर मद्रास उच्च न्यायालय ने मद्रास बार एसोसिएशन को यह आदेश दिया है कि वो वरिष्ट अधिवक्ता एलीफेंट जी राजेन्द्रण को पांच लाख रुपये मुआवजा देंगे।
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बता दें कि अदालत का यह कहना है कि एक पब्लिक इन्स्टिट्यूशन के तहत आने वाली प्रॉपर्टी सभी के इस्तेमाल के लिए बनी है, इसको लेकर बार एसोसिएशन के सदस्य भेदभाव नहीं कर सकते हैं, यह एक नागरिक के मूल अधिकारों का हनन है। एक वकील जब हाईकोर्ट के परिसर में घुस जाता है, तो वो वहां की हर आधारभूत सुविधा (Infrastructural facilities) को इस्तेमाल कर सकता है।
अदालत ने ने 'छुआछूत' (Untouchability) को इस भेदभाव का आधार बताया है और इसलिए यह संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है।
क्या था पूरा मामला
6 जनवरी, 2012 को, वरिष्ट अधिवक्ता एलीफेंट जी राजेन्द्रण के बेटे आर नील राशन, जो एक जूनियर लॉइअर थे, हाईकोर्ट में स्थित मद्रास बार एसोसिएशन के ऑफिस से पानी लेकर पीने लगे। लेकिन जैसे ही वो पानी पीने जा रहे थे, वरिष्ठ अधिवक्ता पांडियन ने पानी का टम्ब्लर खींच लिया और कहा कि क्योंकि वो बार एसोसिएशन के सदस्य नहीं हैं, वो पानी नहीं पी सकते हैं।
मामले की सुनवाई के दौरान MBA का यह कहना है कि क्योंकि एक सड़क दुर्घटना में आर नील राशन का देहांत हो चुका है, अब इस मामले को बंद कर देना चाहिए।
इसपर मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस सुब्रमणियम ने कहा है कि एक शख्स के देहांत होने से सामाजिक मुद्दा खत्म नहीं हो जाता है और इस तरह बिना फैसला सुनाए केस बंद करना कोई समाधान नहीं है।
इस मामले में क्योंकि 'छुआछूत' की बात हुई है, बता दें कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 (Article 17 of The Indian Constitution) में यह स्पष्ट किया गया है कि 'छुआछूत' समाप्त (Abolish) कर दिया गया है और किसी भी प्रकार से इसका अभ्यास करना निषेध है। इससे जुड़ी कोई भी गतिविधि करना कानून के तहत एक दंडनीय अपराध है।