गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में उम्रकैद के दोषी को जमानत
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा ट्रेन में आगजनी के एक दोषी को जमानत पर रिहा करने का रिहा करने का आदेश दिया है. 27 फरवरी, 2002 को अयोध्या से तीर्थयात्रियों को ले जा रही साबरमती एक्सप्रेस के चार डिब्बों में गोधरा में आग लगा दी गई थी. जिसके बाद गुजरात में बड़े स्तर पर दंगे हुए थे और करीब 2,000 से अधिक लोग मारे गए थे.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पीठ ने ट्रेन में आग लगाने के दोषी फारूक की ओर से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दोषी 17 साल से सलाखों के पीछे है, जबकि दोषी द्वारा दायर अपील लंबे समय से पेडिंग है.
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सरकार ने किया जमानत का विरोध
फारूक समेत कई अन्य लोगों को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के कोच पर पथराव करने का दोषी ठहराया गया था।
गुजरात सरकार की तरफ जमानत याचिका का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह सबसे जघन्य अपराध था’, जिसमें महिलाओं और बच्चों समेत 59 लोगों को जिंदा जला दिया गया था. मेहता ने कहा कि आमतौर पर पथराव मामूली प्रकृति का अपराध माना जाता है, लेकिन उक्त मामले में ट्रेन के कोच को अलग किया गया था और यह सुनिश्चित करने के लिए उस पर पथराव किया गया था कि यात्री बाहर न आ सकें.
सुनवाई के दौरान एसजी तुषार मेहता ने इस केस से जुड़ी सभी अपीलों को एक साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया.इस पर सीजेआई ने एसजी को अपने जूनियर से अपीलों का विवरण तैयार करने और विवरण को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार पुनीत सहगल को देने के निर्देश दिए है.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने दोषी फारूक की जमानत पर उसके द्वारा जेल में बितायी गयी 17 साल की अवधी और उसके कृत्य को देखते हुए सुनवाई को तैयार हुआ. फारूक की ओर से अधिवक्ता ने बताया कि वह 17 साल की सजा काट चुका है और उसकी भूमिका ट्रेन में पथराव की थी.
पीठ ने अपने फेसले में कहा मामले के तथ्यों में, आरोपी नंबर 4, फारूक द्वारा दायर जमानत का आवेदन मंजूर किया जाता है। आवेदक को आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध का दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर 2017 को उसकी अपील को खारिज कर दिया था. आवेदक ने इस आधार पर जमानत मांगी है कि वह 2004 से हिरासत में है और लगभग 17 साल तक कारावास काट चुका है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और आवेदक की भूमिका को देखते हुए, हम निर्देश देते हैं आवेदक को ऐसे नियमों और शर्तों के अधीन जमानत दी जाएगी जो सत्र न्यायालय द्वारा लगाई जा सकती हैं।"
11 दोषियों को मौत की सजा
गोधरा में ट्रेन जलाने के मामले में 100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था. कररीब 9 साल बाद मामले में ट्रायल कोर्ट ने फरवरी 2011 में फैसला सुनाते हुए 31 को लोगो को दोषी ठहराते हुए 63 को बरी कर दिया था. 31 दोषियों में से से 11 को मौत की सजा दी गई जबकि बाकी 20 को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी.
दोषियों की ओर से ट्रायल के फैसले को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौति दी गयी. हाईकोर्ट ने सभी दोषियों की अपील पर सुनवाई करते हुए अक्टूबर 2017 में सभी की सजा को बरकरार रखा, लेकिन 11 दोषियों की मौत की सजा को उम्रकैद की सजा में बदल दिया. हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दोषियों के साथ राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर चुनौति दी गयी.