Advertisement

Badlapur Encounter: बॉम्बे हाईकोर्ट ने CID जांच को बताया 'असामान्य', दो सप्ताह के भीतर मजिस्ट्रेट को पूरी रिपोर्ट देने को कहा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी शिंदे के हाथों पर गोली के निशान न होना और उसे दी गई पानी की बोतल पर उंगलियों के निशान न होने को असामान्य बताया है.

Written By Satyam Kumar | Updated : November 18, 2024 7:00 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने 23 सितंबर को मारे गए अक्षय शिंदे की पुलिस मुठभेड़ (Police Encounter) की जांच में लापरवाही के लिए महाराष्ट्र सीआईडी की आलोचना की है. कोर्ट ने आरोपी शिंदे के हाथों पर गोली के निशान न होना और उसे दी गई पानी की बोतल पर उंगलियों के निशान न होने को असामान्य बताया है. अदालत ने सीआईडी (CID)  को दो सप्ताह के भीतर जांच पूरी करने और मजिस्ट्रेट के सामने सभी प्रासंगिक सामग्री पेश करने का निर्देश दिया है. अदालत ने उक्त निर्देशों के साथ मामले की अगली सुनवाई 2 दिसंबर को तय की है.

जांच में CID की लापरवाही

बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस रेवती रमन डेरे और पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने कहा कि मामले की जांच को हल्के में लिया गया है और इसमें कई खामियां हैं. पीठ ने राज्य सीआईडी ​​की ओर से पेश महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ से पूछा कि जांच में खामियों को सही ठहराने के लिए वह कब तक और किस हद तक जाएंगे. हाईकोर्ट ने कहा कि जांच किस तरह की जा रही है, यह देखने और कहने के लिए किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं है.

Advertisement

अदालत ने कहा,

Also Read

More News

"हमारा प्रयास यह सुनिश्चित करना है कि हर सामग्री एकत्र की जाए और मजिस्ट्रेट के सामने रखी जाए तथा जांच सही तरीके से आगे बढ़े. हम निष्पक्ष जांच चाहते हैं."

अदालत ने सीआईडी ​​को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि मामले की जांच दो सप्ताह में पूरी हो जाए और सभी प्रासंगिक सामग्री मजिस्ट्रेट को सौंप दी जाए.

Advertisement

मजिस्ट्रेट को जांच की रिपोर्ट सौंपे CID

साथ ही अदालत ने CID को मजिस्ट्रेट के लिए सौंपी जाने वाली सामग्री एकत्र करने में देरी करने के लिए भी फटकार लगाई है. हाईकोर्ट ने कहा कि कानून के तहत, हिरासत में मौतों के मामलों में मजिस्ट्रेट जांच अनिवार्य है. वहीं अदालत का काम यह देखना है कि जांच ठीक से की जाए और अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो सवाल उठता है कि ऐसा क्यों नहीं किया गया.

अदालत ने आगे कहा,

"आप (सीआईडी) मजिस्ट्रेट को विवरण न देकर प्रक्रिया में देरी क्यों कर रहे हैं? आप अभी भी बयान दर्ज कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि कानून के अनुसार मजिस्ट्रेट को सभी जानकारी दी जाए. रिपोर्ट आज आनी थी और पुलिस अभी भी बयान दर्ज कर रही है,"

अदालत ने ये भी कहा,

"किस तरह से जांच को हल्के में लिया गया है. मजिस्ट्रेट केवल यह देखने जा रहे हैं कि मौत हिरासत में हुई थी या नहीं. अगर पुलिस उचित सामग्री भी प्रस्तुत नहीं करती है तो मजिस्ट्रेट अपना काम कैसे करेगा,"