मलियाना हत्याकांड के आरोपियों को बरी करने के फैसले की समीक्षा करेगा Allahabad High Court
नई दिल्ली: Allahabad High Court बहुचर्चितम मलियाना हत्याकांड मामले में निचली अदालत द्वारा 39 आरोपियों को बरी करने के फैसले की समीक्षा करेगा. हाईकोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत द्वारा आरोपियों को बरी करने के फैसले से जुड़ा रिकॉर्ड तलब किया है.मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त 2023 को होगी।
Allahabad High Court के जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस मनीष कुमार निगम की पीठ मृतको के एक परिजन रईस अहमद की ओर से दायर अपील पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिए है.
मेरठ के अपर जिला व सत्र न्यायाधीश लखविंदर सूद ने 31 मार्च 2023 को फैसला सुनाते हुए वर्ष 1987 में मलियाना में हुए नरसंहार के 36 साल पुराने मामले के 39 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था.
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इस नरसंहार में एक ही दिन में 72 लोगो को मार दिया गया था और उनमें सभी मुस्लिम थे. अदालत ने अपने फैसले में मामले के सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया था.
घटना के पीड़ितों के परिजनों ने अदालत के इस आदेश को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की है.
नामजद मुकदमा
उल्लेखनीय है कि 23 मई, 1987 को पड़ोसी हाशिमपुरा में एक दिन पहले हुई झड़पों के बाद मलियाना में दंगे भड़क उठे थे. मालियाना में हुई हिंसा में 72 लोगों की मौत हुई थी, जबकि हाशिमपुरा में 42 लोगों की जान चली गई थी
23 मई 1987 को मेरठ के मलियाना होली चौक पर हुए इस मामले में वादी याकूब अली निवासी मलियाना ने 24 मई 1987 को 93 लोगों के खिलाफ को नामजद मुकदमा दर्ज कराया था.
23 मई की घटना में करीब 72 लोग मारे गए थे और 100 से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे. इस मामले में वादी सहित 10 गवाहों ने अदालत में अपनी गवाही दी, लेकिन अभियोजन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर केस साबित करने में सफल नहीं रहा.
ट्रायल कोर्ट ने 31 मार्च को इस मामले में गवाहों की गवाही और पत्रावली पर उपस्थित साक्ष्यों के आधार पर सभी 39 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करने का फैसला सुनाया है.
गौरतलब है कि मुकदमा दायर होने के बाद से फैसले तक 23 आरोपी की मौत हो चुकी है वही कई आरोपियों को पकड़ा ही नहीं जा सका था.
शब-ए-बारात के दिन हुआ सांप्रदायिक दंगा
वर्ष 1987 में मेरठ में सांप्रदायिक दंगे की सिलसिलेवार शुरुआत हुई थी और तब 14 अप्रैल को शब-ए-बारात के दिन सांप्रदायिक दंगा हुआ, जिसमें 12 लोगों की मौत हुई. पुलिस प्रशासन ने कर्फ्यू लगाकर स्थिति को नियंत्रित कर लिया, लेकिन तनाव बना रहा और मेरठ में दो-तीन महीनों तक रुक-रुक कर दंगे होते रहे.
मेरठ में सांप्रदायिक दंगे के बाद 22 मई 1987 को हाशिमपुरा नरसंहार हुआ, जिसमें 42 लोगों की हत्या की गई थी और इस मामले में 2018 में 16 पीएसी जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. हाशिमपुरा नरसंहार के अगले ही दिन 23 मई को मलियाना में हुए नरसंहार में 72 लोगों की मौत हो गई थी.
हिंसा के बाद याकूब अली ने टी.पी. नगर थाने में 93 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया था. जुलाई 1988 में पुलिस ने 61 चश्मदीदों का जिक्र करते हुए 79 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. हालांकि इस मामले में केवल 14 चश्मदीदों ने ही अपना बयान दर्ज कराया.
36 साल से भी ज्यादा समय तक चली इस केस की सुनवाई के दौरान ही पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर समेत 23 आरोपियों की मौत हो गई थी.इस केस में करीब 36 सालों में सुनवाई के दौरान 900 से ज्यादा तारीखें पर सुनवाई की गई.