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यौन शोषण के 'असली' मामले बन चुके हैं अपवाद, मर्दों के खिलाफ Biased है कानून: Allahabad High Court

Allahabad high Court Says Laws on Sexual Offences Biased Against Men

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की है कि पिछले कुछ समय में यौन शोषण के 'वास्तविक' मामलों की संख्या बहुत कम हो गई है, यह एक अपवाद उर्फ एक्सेप्शन बन गए हैं; कानून मर्दों के खिलाफ बहुत बायस्ड है...

Written By Ananya Srivastava | Published : August 3, 2023 12:49 PM IST

नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) में एक मामला सामने आया जिसमें याचिकाकर्ता ने जमानत की मांग की है, उसपर आईपीसी और पॉक्सो के तहत कई आरोप लगे हैं। जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह बेहद जरूरी टिप्पणी की है कि आज के समय में यौन शोषण के 'असली' मामले अपवाद बन चुके हैं और कानून मर्दों के खिलाफ बहुत पक्षपाती (Heavily Biased) हो गया है।

रेप और अन्य यौन अपराधों के गलत आरोपों की ओर इशारा करते हुए यह बात इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सिद्धार्थ (Justice Siddharth) की एकल पीठ ने कही है।

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यौन शोषण से जुड़े कानूनों को बताया 'पक्षपाती'

जैसा कि हमने आपको अभी बताया, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस सिद्धार्थ की एकल पीठ ने यह टिप्पणी की कि यौन शोषण के मामलों के लिए बनाए कानून पुरुषों के खिलाफ बायस्ड हैं। कोर्ट ने कहा कि अदालतों को इस तरह के मामलों में दायर जमानत याचिकाओं की सुनवाई करते समय इस पक्षपात को ध्यान में रखना चाहिए और बहुत संभालकर, सावधानी बरतते हुए फैसला लेना चाहिए।

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अदालत ने यह भी कहा कि क्योंकि कानून पुरुषों के खिलाफ बहुत बायस्ड है, एफआईआर में किसी भी तरह के अनर्गल आरोप लगाना और वर्तमान मामले की तरह किसी को भी ऐसे आरोपों में फंसाना बहुत आसान है।

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कोर्ट ने कहा कि कई ऐसी भी एफआईआर दायर की गई हैं जिनमें लड़के-लड़कियां कुछ समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं और फिर धीरे-धीरे जब एक दूसरे का असली स्वभाव दिखने लगता है, विवाद शुरू हो जाते हैं। क्योंकि कानून का लड़कयों और महिलाओं की सुरक्षा की तरफ ज्यादा झुकाव होता है, कई लड़कियां लड़कों या मर्दों को आसानी से फंसा लेती हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को दी जमानत

इस मामले में कथित आरोपी और याचिकाकर्ता को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी और यह भी कहा कि उनके हिसाब से मामले में एफआईआर गलत इल्जाम और झूठे तथ्यों के आधार पर दायर की गई थी।

जानें क्या था मामला

जिस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है, उसमें याचिकाकर्ता पर आईपीसी के तहत रेप और अन्य यौन अपराधों और पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराधों के आरोप लगे हैं। याचिकाकर्ता ने जमानत हेतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

प्रतिवादी पक्ष ने याचिकाकर्ता पर आरोप लगाए हैं कि उसने एक नाबालिग लड़की के साथ कई बार यौन संबंध स्थापित किए और फिर इसी कारण से उससे शादी भी कर ली। प्रतिवादी पक्ष ने कहा कि 'आरोपी' ने अपनी पत्नी के साथ अपने भाई के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए जबरदस्ती की और जब उसने मना करने की कोशिश की तो आरोपी-याचिकाकर्ता और उसके भाई ने लड़की के साथ मारपीट की।

इसपर आरोपी-याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि लड़की नाबालिग नहीं ही और उसका पिछले एक साल से याचिकाकर्ता के साथ अफेयर चल रहा था; उसने अपनी मर्जी से अपना घर छोड़ा, याचिककर्ता के रिश्तेदार के घर आई, आरोपी के साथ अपनी इच्छा से शारीरिक संबंध बनाए और शादी भी की। आरोपी का यह कहना है कि लड़की के माता-पिता शादी के बाद उसे जबरदस्ती लेकर चले गए और जब परिवारों के बीच विवाद हुआ तो उसने एफआईआर दायर कर दी।