लिव-इन में रहने वाले दूर के हिंदू-मुस्लिम चचेरे भाई-बहन को हाईकोर्ट ने प्रोटेक्शन देने से किया मना, ये रही वजह
Live-In-Relationship: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में एक लिव-इन कपल (Live- In-Couple) को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया. कपल दूर के चचेरे भाई-बहन थे. दोनों अलग-अलग धर्मों के हैं. उनका दावा है कि उन्होंने आर्य समाज मंदिर में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की थी.
जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. बेंच ने कहा कि दंपति अलग-अलग धर्मों के हैं, इसलिए यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 8 और 9 का अनुपालन आवश्यक है. लेकिन वर्तमान मामले में पालन नहीं हुआ है.
अदालत ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 8 और 9 के अनुपालन के लिए दंपति जिला मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकते हैं और अधिनियम के तहत आवश्यक आदेश प्राप्त कर सकते हैं. अगर कपल जिला मजिस्ट्रेट से आवश्यक मंजूरी मांगते हैं, तो वे इस अदालत के समक्ष नई याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
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यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम की धारा 8 में क्या लिखा है?
अधिनियम की धारा 8 में धर्म परिवर्तन से पहले घोषणा करने का प्रावधान है. वहीं धारा 9 में धर्म परिवर्तन के बाद घोषणा का प्रावधान है. धारा 8 के अनुसार, जो व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है, उसे कम से कम साठ दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को एक घोषणा पत्र देना होगा कि धर्म परिवर्तन करने का निर्णय उसका अपना है और बिना किसी दबाव, जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव और प्रलोभन के स्वतंत्र सहमति से किया जाएगा. इसी तरह की एक महीने की अग्रिम सूचना धर्मांतरण समारोह करने वाले व्यक्ति को जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को भी देनी होती है.
कपल ने क्या दलील दी?
कपल ने अदालत में बताया कि वो मामा पक्ष से दूर के चचेरे भाई-बहन थे, लेकिन लड़की ने हिंदू लड़के से शादी करने के लिए अपना धर्म मुस्लिम से हिंदू में बदल लिया था. उसने कहा कि इसके लिए उसने 30 जून, 2023 को जिला मजिस्ट्रेट, मेरठ और सहारनपुर के समक्ष एक आवेदन दिया था और समाचार पत्र में ये भी प्रकाशित कराया था कि उसने अपना नाम और धर्म बदल लिया है.
जोड़े ने इस आधार पर सुरक्षा मांगी कि वे बालिग हैं, अपनी इच्छा से एक साथ रह रहे थे, लेकिन लड़की के पिता उनके शांतिपूर्ण लिव-इन रिश्ते में हस्तक्षेप कर रहे हैं.
जोड़े की याचिका का विरोध करते हुए राज्य के सरकारी वकील ने कहा कि उनका विवाह अधिनियम में निहित विधायी निषेध के अंतर्गत आएगा और अधिनियम की धारा 8 और 9 के अनुपालन के बिना याचिकाकर्ता अपना धर्म नहीं बदल सकते.
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और कहा कि प्रथम दृष्टया मामले को दोबारा धर्मांतरण का मामला नहीं माना जा सकता है और इसलिए, अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन आवश्यक है.