मेटरनिटी लीव के लिए दो साल गैप अनिवार्यता कानून के विरूद्ध, इलाहाबाद HC ने BSA रामपुर का आदेश किया खारिज
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेटरनिटी लीव से जु़डे मामले में एक अहम फैसला सुनाया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मेटरनिटी लीव से मना करने कानून के विरूद्ध है. अदालत ने सहायक अध्यापिका का मातृत्व अवकाश स्वीकार किया है. साथ ही नियमित रूप से वेतन का भुगतान करने को कहा है. मामले में बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) रामपुर ने याचिकाकर्ता को मेटरनिटी लीव देने मना करते हुए कहा था कि दूसरा मेटरनिटी लीव के लिए दो साल गैप चाहिए. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस फैसले को खारिज कर दिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को 180 दिन का मेटरनिटी लीव देने का आदेश दिया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस प्रकाश पाड़िया ने मेटरनिटी लीव की मांग को स्वीकृति दी है. अदालत ने कहा दो साल के समय को आधार बनाकर मेटरनिटी लीव देने से मना करना गलत है. बता दें कि सहायक अध्यापिका ने याचिका में बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) के 9 अगस्त 2024 के फैसले को चुनौती दी थी.
जिला शिक्षा अधिकारी ने कहा कि शासन के नियमानुसार, दूसरे मेटरनिटी लीव के लिए दो साल का गैप अनिवार्य है. शिक्षा अधिकारी के इसी फैसले को शिक्षिका ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है.
Also Read
- सालार मसूद गाजी के 'उर्स' आयोजित करने देने की मांग, जिला प्रशासन के फैसले के खिलाफ Allahabad HC में याचिका दाखिल
- Justice Yashwant Varma को लेकर क्या तय हुआ? जब CJI Sanjiv Khanna से मिलने पहुंचे छह बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट
- 'नाबालिग का ब्रेस्ट पकड़ना Attempt to Rape नहीं', इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बताया 'असंवेदनशील'
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा हाईकोर्ट ने रेणु चौधरी केस में पहले ही तय कर दिया है. इस कारण दो वर्ष की अनिवार्यता को आधार बनाकर मैटरनिटी लीव देने से इंकार करना गलत है. अदालत ने 9 अगस्त के फैसले को रद्द कर दिया है.