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उत्तरप्रदेश के मलियाना नरसंहार मामले के सभी 39 आरोपी बरी, एक ही दिन में मारे गए थे 72 लोग

इस नरसंहार में एक ही दिन में 72 लोगो को मार दिया गया था और उनमें सभी मुस्लिम थे.  अदालत ने अपने फैसले में मामले के सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : April 3, 2023 6:16 AM IST

नई दिल्ली:उत्तरप्रदेश के मेरठ की एक अदालत ने वर्ष 1987 में मलियाना में हुए नरसंहार के 36 साल पुराने मामले के 39 आरोपियों को साक्ष्‍य के अभाव में बरी कर दिया है. मलियाना में दंगे के दौरान हुए नरसंहार मामले में दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद मेरठ के अपर जिला व सत्र न्यायाधीश लखविंदर सूद ने ये फैसला सुनाया है.

इस नरसंहार में एक ही दिन में 72 लोगो को मार दिया गया था और उनमें सभी मुस्लिम थे.  अदालत ने अपने फैसले में मामले के सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया है.

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घटना के पीड़ितों के परिजनों ने अदालत के इस आदेश को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील करने की बात कही है.

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नामजद मुकदमा

शनिवार को आए इस फैसले के बारे में अपर जिला शासकीय अधिवक्ता (एडीजीसी) सचिन मोहन ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि 23 मई 1987 को मेरठ के मलियाना होली चौक पर हुए इस मामले में वादी याकूब अली निवासी मलियाना ने 24 मई 1987 को 93 लोगों के खिलाफ को नामजद मुकदमा दर्ज कराया था.

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23 मई की घटना में करीब 72 लोग मारे गए थे और 100 से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे. सचिन मोहन ने बताया कि इस मामले में वादी सहित 10 गवाहों ने अदालत में अपनी गवाही दी, लेकिन अभियोजन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर केस साबित करने में सफल नहीं रहा.

अदालत ने इस मामले में गवाहों की गवाही और पत्रावली पर उपस्थित साक्ष्यों के आधार पर सभी 39 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करने का फैसला सुनाया है.

गौरतलब है कि मुकदमा दायर होने के बाद से फैसले तक 23 आरोपी की मौत हो चुकी है वही कई आरोपियों को पकड़ा ही नहीं जा सका.

अदालत के फैसले से असंतुष्ट परिजनों में से एक महताब फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने की बात कहते हुए कहा कि'दंगे के दौरान मेरे पिता अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उस वक्त मैं बहुत छोटा था, पिता की लाश मेरे सामने पड़ी थी. जबकि उनका दंगे से कोई लेना देना नहीं था.'

शब-ए-बारात के दिन हुआ सांप्रदायिक दंगा

वर्ष 1987 में मेरठ में सांप्रदायिक दंगे की सिलसिलेवार शुरुआत हुई थी और तब 14 अप्रैल को शब-ए-बारात के दिन सांप्रदायिक दंगा हुआ, जिसमें 12 लोगों की मौत हुई. पुलिस प्रशासन ने कर्फ्यू लगाकर स्थिति को नियंत्रित कर लिया, लेकिन तनाव बना रहा और मेरठ में दो-तीन महीनों तक रुक-रुक कर दंगे होते रहे.

मेरठ में सांप्रदायिक दंगे के बाद 22 मई 1987 को हाशिमपुरा नरसंहार हुआ, जिसमें 42 लोगों की हत्या की गई थी और इस मामले में 2018 में 16 पीएसी जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. हाशिमपुरा नरसंहार के अगले ही दिन 23 मई को मलियाना में हुए नरसंहार में 72 लोगों की मौत हो गई थी.

हिंसा के बाद याकूब अली ने टी.पी. नगर थाने में 93 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया था. जुलाई 1988 में पुलिस ने 61 चश्मदीदों का जिक्र करते हुए 79 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. हालांकि इस मामले में केवल 14 चश्मदीदों ने ही अपना बयान दर्ज कराया.

36 साल से भी ज्यादा समय तक चली इस केस की सुनवाई के दौरान ही पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर समेत 23 आरोपियों की मौत हो गई थी.इस केस में करीब 36 सालों में सुनवाई के दौरान 900 से ज्यादा तारीखें पर सुनवाई की गई.