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मौत की सजा के मामले में टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट की राजस्थान हाईकोर्ट को फटकार

8 साल की मासूम बच्ची से रेप और हत्या के मामले में दोषी की मौत की सजा को बदलकर उम्रकैद करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कई टिप्पणियां की थी. इस मामले में राजस्थान पुलिस पर वाहवाही लेने के चक्कर में निर्दोष को फंसाने का भी आरोप लगा था.

Written By Nizam Kantaliya | Published : January 14, 2023 9:47 AM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार के लिए भेजे गए मौत की सजा के एक मामले में गुण-दोष पर टिप्पणी करने पर आपत्ति जताते हुए राजस्थान हाईकोर्ट को फटकार लगाई है.

जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस एस रविन्द्र भट्ट की पीठ ने मौत की सजा के एक मामले पर राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी को बेहद गंभीरता से लेते हुए कहा कि हाईकोर्ट को ऐसा नहीं करना चाहिए था.

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न्यायिक अनुशासन की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान बनाम कोमल लोढा के मामले में दी गई मौत की सजा के मामले को पुनर्विचार के लिए राजस्थान हाई कोर्ट को भेजा था. जिस पर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शीर्ष अदालत के समक्ष अपीलकर्ता को कोई सहायता प्रदान नहीं की गई थी.

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राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा की गई इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्यायिक अनुशासन के खिलाफ बताया है.

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पीठ ने कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट का इस तरह का आचरण उचित नहीं था, जब हाईकोर्ट को केवल सजा के पहलू पर विचार करना करने के लिए कहा गया था, कि मौत की सजा दी जाए या नहीं.

पीठ ने आगे कहा कि इस मामले में न्यायिक अनुशासन बनाए रखने की जरूरत थी. क्योकि जब एक बार अदालत द्वारा अभियुक्तों की सुनवाई करने और दोषसिद्धि की पुष्टि हो जाने के बाद हाईकोर्ट को मामले की योग्यता पर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए.

पीठ ने ऐसा विशेष रूप से तब नहीं किया जाना चाहिए, जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि की विशेष रूप से पुष्टि की गई थी.

मासूम से रेप और हत्या

27 सितंबर 2019 को राजस्थान में झालावाड़ की विशेष पोक्सो कोर्ट ने 8 साल की मासूम बच्ची (8 year old girl) से रेप और फिर हत्या (rape and murder) के मामले में आरोपी कोमल लोढ़ा को मौत की सजा सुनाई गई थी.

कोमल लोढा पर झालवाड़ा (Jhalawar) जिले के कामखेड़ा थाना इलाके में वर्ष 2018 में मासूम बच्ची को बहलाकर खेत में ले जाने, वहां उसके साथ रेप करने और पहचान उजागर होने के डर से हत्या करने का आरोप था. यह घटना 27 जुलाई 2018 को हुई थी.

झालावाड़ पुलिस ने इस मामले में घटना के तीन दिन बाद ही रेप और हत्या की गुत्थी सुलझाते हुए गांव के ही युवक कोमल लोढा को गिरफ्तार किया था.

हाईकोर्ट ने बताया था निर्दोष

बच्ची से दुष्कर्म-हत्या के मामले में 10 दिन में चालान पेश करने वाली पुलिस पर बाद में कोमल लोढ़ा को बालिग मानकर फंसाने का आरोप लगा था.

राजस्थान हाईकोर्ट की जस्टिस पंकज भंडारी व अनूप कुमार ढंढ की बेंच ने इस मामले में तकनीकी वजह से बरी करने की बजाय आजीवन कारावास की सजा दी.

हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपी कोमल लोढा की मौत की सजा को यंत्रवत् रूप से उम्रकैद में बदल दिया था. मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने के खिलाफ राज्य द्वारा मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया.

सजा के बिंदु पर

सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी 2022 को राजस्थान सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही मामले को पुनर्विचार के लिए राजस्थान हाईकोर्ट को भेजते हुए सजा के बिंदु पर फिर से सुनवाई के लिए कहा.

11 मई, 2022 को फैसला सुनाते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले मे मौत की सजा पाने वाले कोमल लोढ़ा को गलत तरीके से दोषी ठहराए जाने पर, झालावाड़ के पुलिस अधीक्षक को सात साल के बलात्कार और हत्या से उत्पन्न मामले की जांच फिर से शुरू करने का निर्देश दिया था.

हाईकोर्ट ने इस मामले में केस री-ओपन कर गलत जांच करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि हम भारी मन और न्याय की उम्मीद के साथ ऐसे जुर्म के आरोपी को उम्रकैद दे रहे हैं जो किसी और ने किया है.

हाईकोर्ट ने अपने फैसले के पैरा 42 में पुलिस की जांच पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत के समक्ष अपीलकर्ता को कोई सहायता प्रदान नहीं की गई थी.

हाईकोर्ट ने इस मामले की नए सिरे से जांच करने का भी निर्देश देते हुए कुछ अन्य अभियुक्तों को जिनके डीएनए प्राप्त किए गए थे शामिल करते हुए जांच के निर्देश दिए.

राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले में की टिप्पणियों को लेकर एक बार फिर राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.

क्यों आई सरकार सुप्रीम कोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के चलते राजस्थान सरकार के साथ राजस्थान पुलिस की जमकर किरकिरी हुई. राजस्थान पुलिस पर कई गंभीर आरोप लगे. यहां तक की सरकार के लिए इस मामले में जवाब देना मुश्किल हो गया था.

ऐसे में हाई कोर्ट की टिप्पणियों के खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में राजस्थान हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस मामले में न्यायिक अनुशासन की आवश्यकता है

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के पैरा संख्या 42 को अलग करने के आदेश दिए है. वही अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप से इंकार किया है.