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AIMPLB ने Uniform Civil Code पर दर्ज की आपत्ति, कहा आदिवासी और धार्मिक माइनॉरिटीज को न बनाएं इसका हिस्सा

AIMPLB Against Uniform Civil Code Submits Draft to Law Commission

समान नागरिक संहिता के भारत में लागू किये जाने पर काफी चर्चा हो रही है; अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने विधि आयोग को यूसीसी के खिलाफ अपनी आपत्तियां एक नए ड्राफ्ट के रूप में भेजी हैं...

Written By Ananya Srivastava | Published : July 6, 2023 10:08 AM IST

नई दिल्ली: भारत में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का 'ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' (All India Muslim Personal Law Board) ने विरोध किया है और विधि आयोग (Law Commission) को उन्होंने अपनी सभी आपत्तियां एक ड्राफ्ट के रूप में भेजी हैं।

मुस्लिम बोर्ड का यह कहना है कि समान नागरिक संहिता को लागू करते समय आदिवासियों (Tribals) और धार्मिक अल्पसंख्यकों (Religious Minorities) को इसकी परिधि से बाहर रखना चाहिए। बुधवार को मुस्लिम बोर्ड ने एक वर्चुअल बैठक में इस बारे में चर्चा की थी जिसके बाद उन्होंने अपना बयान जारी है।

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क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारतीय संविधान में किस तरह हुआ है इसका उल्लेख?

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बता दें कि विधि आयोग ने 14 जुलाई तक का समय दिया है कि अलग-अलग समुदाय उन्हें यूसीसी पर अपने मत बताएं और आपत्तियां दर्ज करें।

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UCC पर AIMPLB का बयान

बुधवार को 'ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' ने इस बारे में एक बयान जारी किया है। एआईएमपीएलबी के सचिव, मोहम्मद कहा है कि राष्ट्रीय अखंडता, सुरक्षा और संरक्षण (National Integrity, safety and protection) को सिर्फ तब संजोकर रखा जा सकता है जब हम देश की विविधता को बरकरार रखें। ऐसा तब होगा जब देश के अल्पसंख्यकों (minorities) और आदिवासी समाज (tribal communities) को उनके पर्सनल लॉ के आधार पर काम करने की अनुमति दी जाएगी।

बोर्ड ने यह भी कहा है कि मुस्लिम लोगों के व्यक्तिगत रिश्ते उनके पर्सनल लॉ द्वारा निर्देशित हैं; इन्हें सीधे कुरान (Holy Quran) और इस्लामिक कानूनों से लिया जाता है और यह उनकी पहचान से जुड़ा हुआ है। देश के संवैधानिक ढांचे के भीतर मुसलमान अपनी पहचान खोने को तैयार नहीं हैं।

यूसीसी (UCC) का विरोध करते हुए मुस्लिम बोर्ड ने अपने स्टेटमेंट में यह भी कहा है कि समान नागरिक संहिता अलग-अलग धार्मिक संस्कृतियों के खिलाफ जाएगा, यह संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 में निहित धार्मिक मौलिक अधिकारों का हनन होगा, देश के लोकतान्त्रिक ढांचे पर इसका सीधा असर पड़ेगा और लैंगिक न्याय (gender justice), धर्मनिरपेक्षता (secularism), राष्ट्रीय एकता और अलग-अलग धर्मों के रीति-रिवाजों पर भी इसका असर पड़ेगा।

UCC 'राजनीति का साधन'

मुस्लिम बोर्ड ने यह भी कहा है कि समान नागरिक संहिता को लागू करना सिर्फ 'राजनीति और प्रचार का साधन' हो गया है, और विधि आयोग पहले भी इसे न लागू करने की बात कर चुका है। मुस्लिम बोर्ड ने यहां संविधान की बात करते हुए कहा है कि उसमें भी विविधता को जगह दी गई है और अलग-अलग समुदायों को अधिकार दिए गए हैं, अलग जगह दी गई है। ऐसे में समान नागरिक संहिता को लागू करना किस तरह सही हो सकता है!

भारत सरकार के एजेंडा के तीन प्रमुख बिंदुओं में समान नागरिक संहिता भी शामिल है और केवल यही है, जिसे फिलहाल पूरा नहीं किया गया है। देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे ने तब रफ्तार पकड़ी जब हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने भोपाल में अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से एक बात कही।

उन्होंने कहा- "आप मुझे बताएं, एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून और दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून कैसे हो सकता है? क्या वह घर चल पाएगा? तो फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? हमें याद रखना होगा कि संविधान में भी सभी के लिए समान अधिकार की बात कही गई है.''

गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग IV, अनुच्छेद 44 में किया गया है। यूसीसी 'राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत' (Directive Principles of State Policy) के तहत आता है।