विवाह से बाहर सहमति से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं, Rajasthan High Court ने खारिज की पति की याचिका
Sex Outside Marriage: क्या कोई महिला अपनी शादी से बाहर जाकर अपनी ईच्छा से संबंध बना सकती है? सवाल सुनकर ही आपकी भावनाएं उद्वेलित हो जाए, आप क्रोधित हो जाएं. समाज आधारित नियमों का हवाला दें. साथ ही बात को सिद्ध करने के लिए अनेक तर्क भी देंगे. लेकिन कानून की नजर में, शादी के बाहर जाकर संबंध बनाना अपराध नहीं है. राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसला सुनाया है जिसमें पति के आरोपों को खारिज किया. आइये जानते हैं पूरा वाक्या…
Rajasthan HC ने खारिज की याचिका
राजस्थान उच्च न्यायालय में जस्टिस बिरेन्द्र कुमार की बेंच के सामने इस मामले को पेश किया गया. जिसमें एक व्यक्ति ने जिला अदालत द्वारा खारिज किए गए प्राथमिकी को पुन: लागू करने की मांग की. पति ने तीन व्यक्तियों पर आरोप लगाया. इन तीनों ने उसकी पत्नी को अगवा कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाया है. जस्टिस ने तथ्यों पर गौर कर पाया कि शादी के बाहर, सहमति से बने इन संबंधों में कानून का उल्लंघन नहीं हो रहा है. वहीं, Adultery के अपराध को सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही रद्द कर दिया है.
Adultery अब अपराध नहीं
बेंच ने S Khushboo Vs. Kanniammal & Ors. में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ओर ध्यान दिलाया. इस केस में फैसले में शादी के बाहर जाकर सहमति से यौन संबंध बनाना कोई वैधानिक अपराध नहीं होता है. हां, आईपीसी के सेक्शन 497 के अनुसार, व्याभिचार (Adultery) एक अपवाद था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे पहले ही खारिज कर दिया है.
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FIR रद्द करने के फैसले को मिली चुनौती
एक व्यक्ति ने राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. याचिका में रद्द प्राथमिकी को पुन: लागू करने की मांग की. FIR में तीन व्यक्तियों को आरोप लगाया कि उन्होंने उसकी पत्नी को अपहरण किया. पत्नी के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए हैं. उसकी इस मांग को अदालत ने खारिज कर दिया था जिसे उसने राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
पत्नी ने रखी अपनी बात
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता उपस्थित नहीं हो सका. वह किसी अन्य अपराध में जेल में बंद है. वहीं, उसकी पत्नी उच्च न्यायालय के सामने उपस्थित हुई. पत्नी ने स्वीकारा, उसने तीनों आरोपियों में से एक के साथ, अपनी सहमति से संबंध बनाए थे.
याचिकाकर्ता ने की मांग
याचिकार्ता के वकील ने कहा. न्यायालय इस मामले में समाजिक नैतिकता को ध्यान में रखकर फैसला सुनाने की मांग की.
राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मांग को मेरिट नहीं पाया. कोर्ट ने इस मामले को खारिज कर दिया है.