Adani-Hindenburg dispute: केन्द्र से सीलबंद लिफाफे में नाम स्वीकार करने से Supreme Court का इंकार
नई दिल्ली: अडानी ग्रुप (Adani) के खिलाफ हिंडनबर्ग रिपोर्ट (Hindenburg Report) की जांच को लेकर कमेटी को गठन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बात कही है.
सुप्रीम कोर्ट ने जांच करने के लिए कमेटी का गठन और उसके सदस्यों के नाम केन्द्र से सीलबंद लिफाफे में स्वीकार करने से इनकार कर दिया है.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने शुक्रवार को स्पष्ट कर दिया है कि वह जनता के बीच इस मुद्दे पर पारदर्शिता के लिए सही विशेषज्ञों का चुनाव करेगा. और वह केन्द्र की ओर से सिलबंद लिफाफे में दिए जाने वाले नाम को स्वीकार नहीं करेगा.
Also Read
- राम मंदिर, न्यायपालिका में अपर कास्ट और राजनीतिक प्रभाव... पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने नए इंटरव्यू में सभी जबाव दिए
- सोशल मीडिया पर 20 सेकंड के वीडियो से बनती है राय, अदालतों के फैसले लेने की प्रक्रिया कहीं अधिक गंभीर: पूर्व CJI DY Chandrachud
- लेडी जस्टिस में बदलाव, लाइव हियरिंग... पूर्व CJI DY Chandrachud की देन, जानें उनके कार्यकाल के दौरान SC में क्या-क्या बदलाव हुए
शुक्रवार को सुनवाई के बाद सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह हिंडनबर्ग-अडानी रिपोर्ट की जांच के लिए गठित की जाने वाली समिति में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा सुझाए गए विशेषज्ञों के मुहरबंद नामों को स्वीकार नहीं करेगा, जिसके कारण अडानी समूह के शेयरों में गिरावट आई और भविष्य के लिए नियामक और वैधानिक उपचारात्मक उपाय सुझाए गए.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "हम विशेषज्ञों का चयन करेंगे और पूरी पारदर्शिता बनाए रखेंगे. अगर हम सरकार से नाम लेते हैं, तो यह सरकार द्वारा गठित समिति के लिए होगा. समिति पर जनता का पूर्ण विश्वास होना चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी के गठन को लेकर सेबी के सुझावों को को भी स्वीकार करने से इंकार किया है. . अब कोर्ट खुद ही नियामक ढांचे में आवश्यक परिवर्तनों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति करेगा.
जैसा की कोर्ट ने कहा कि वह "निवेशकों की सुरक्षा के लिए पूर्ण पारदर्शिता" बनाए रखने के लिए स्वयं ही नियुक्त करेगा.
सॉलिस्टर जनरल ने कहा
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से एसजी तुषार मेहता ने सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट पेश की. इसके साथ ही विशेषज्ञ समिति के लिए नाम भी सुझाए. कमेटी के अधिकार क्षेत्र को लेकर कोर्ट को नोट सौपते हुए SG तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि कमेटी गठित करने में देरी नहीं होनी चाहिए.
मेहता ने कोर्ट से कहा कि आपको तय करना है कि कमेटी की निगरानी SC के रिटायर्ड जज करे या नहीं, ये ध्यान रखा जाए कि बाज़ार पर इसका प्रतिकूल असर न पड़े.
एसजी के सुझाव पर सीजेआई ने कहा कि हम चाहते है कि कमेटी के गठन को लेकर पारदर्शिता रहे. क्योंकि अगर हम सरकार की ओर से सुझाए कमेटी के सदस्यों के नाम मंजूर भी न करें तब भी ये सन्देश जा सकता है कि सरकार की मर्जी के मुताबिक कमेटी का गठन हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट खुद करेगा गठन
सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए कमेटी के गठन को लेकर सेबी के सुझावों को स्वीकार करने से इनकार करते किया हैं. अब कोर्ट खुद ही नियामक ढांचे में आवश्यक परिवर्तनों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति करेगा.
मामले में "पूर्ण पारदर्शिता" की वकालत करते हुए सीजेआई ने कहा कि समिति खुद जजों द्वारा चुनी जाएगी और केंद्र या याचिकाकर्ताओं के किसी भी सुझाव पर विचार नहीं किया जाएगा.
जैसा की कोर्ट ने कहा कि वह "निवेशकों की सुरक्षा के लिए पूर्ण पारदर्शिता" बनाए रखने के लिए स्वयं ही नियुक्त करेगा. साथ ही सीजेआई ने कहा कि किसी को भी समिति पर सवाल उठाने या सदस्यों की योग्यता पर टिप्पणी करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए
CJI के निर्देश पर सूचीबद्ध हुआ
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह न्यायालय समय के दौरान अधिवक्ता और याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए सीजेआई की पीठ के समक्ष मेंशन करते हुए अनुरोध किया था. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने पूछा था कि इसमें मामला क्या है?
जिसके जवाब में याचिकाकर्ता एडवोकेट विशाल तिवारी ने कहा था कि "ऐसी ही एक याचिका कल भी आ रही है, यह हिंडनबर्ग रिपोर्ट से संबंधित है जिसने देश की छवि को धूमिल किया है और नुकसान पहुंचाया है, दूसरे मामले के साथ इस पर भी सुनवाई की जाए."
सीजेआई चन्द्रचूड़ ने याचिका पर सहमति जताते हुए इस जनहित याचिका को भी दूसरी याचिका के साथ टैग करते हुए शुक्रवार को सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए थे.
रिपोर्ट की जांच की मांग
गौररतलब है कि 24 जनवरी को अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में अडानी पर आरोपी लगाया गया है कि अपने स्टॉक की कीमतों को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर हेराफेरी और अनाचार किया गया.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद से, शेयर बाजार में अडानी के शेयरों में गिरावट आई है. स्टॉक की कीमतों में गिरावट के साथ अडानी समूह को अपने एफपीओ को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा.
अडानी ग्रुप की ओर से भी इस मामले में 413 पन्नों का जवाब प्रकाशित करके आरोपों का खंडन करते हुए इसे भारत के खिलाफ हमला बताया था.
हिंडनबर्ग ने एक रिज्वाइंडर के साथ यह कहते हुए पलटवार किया था कि धोखाधड़ी को राष्ट्रवाद द्वारा अस्पष्ट नहीं किया जा सकता है और वह अपनी रिपोर्ट पर कायम है.
एम एल शर्मा की याचिका में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के पीछे एक बड़ी साजिश होने की भी जांच की मांग की गई है.