दुर्घटना या दुर्भाग्य से हुआ कार्य अपराध नहीं माना जाएगा
नई दिल्ली: भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) देश में आपराधिक कानून का प्राथमिक स्रोत है और यह लोगों के लिए अधिकार और कर्तव्य बताता है. IPC उन लोगों को दंडित करता है जो इसका उल्लंघन करते हैं या कोई अपराध करते हैं.
IPC की धारा 80 लोगों को एक अपवाद भी देती है कि भले ही वे इस अधिनियम का उल्लंघन करते हैं या कोई अपराध करते हैं और यदि वह कार्य किसी दुर्घटना के कारण हुआ है तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा.
क्या कहती है धारा 80
IPC उन लोगों को दंडित करती है जो इसका उल्लंघन करते हैं या कोई अपराध करते हैं लेकिन उन्हीं लोगों के कृत्य को अपराध नहीं माना जाएगा यदि यह दुर्घटना या दुर्भाग्य से किया गया हो.
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लेकिन जिस व्यक्ति को इस धारा के तहत संरक्षित किया जाना है, उसका आपराधिक इरादा या ज्ञान नहीं होना चाहिए और अधिनियम वैध होना चाहिए. इसके इलावा एक दुर्घटना अनजाने और अप्रत्याशित होनी चाहिए. इसका तात्पर्य उस घटना से है जिसका अंदाज़ा साधारण परिस्थिति में कोई समझदार मनुष्य द्वारा भी नहीं लगाया जा सकता.
कब लागू होती है यह धारा
किसी व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य:
-बिना किसी आपराधिक मंशा या ज्ञान के किया गया होगा
-वैध होना चाहिए
-वैध तरीके से किया गया होना चाहिए
-वैध तरीके से किया जाना चाहिए
इस प्रकार धारा 80 में प्रयुक्त शब्द दुर्घटना के अर्थ के भीतर एक कार्य को लाने के लिए, एक आवश्यक आवश्यकता यह है कि घटना के घटित होने किसी व्यक्ति को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. यह कुछ ऐसा है जो सामान्य चीजों से परे होकर होता है.
कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले
के.एम. नानावती बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1962 मामले में, कहा गया था कि IPC की धारा 80 में बचाव का लाभ उठाने के लिए सबूत को साबित करने का भार अभियुक्त पर है. आरोपी को अदालत को संतुष्ट करने की जरूरत है कि कोई मेन्स री मौजूद नहीं है.
उड़ीसा राज्य बनाम खोरा घासी (1978) , मामले में, अभियुक्त ने इस विश्वास के साथ तीर मारकर पीड़ित को मार डाला क्यों की उसे लगा की वह एक भालू को तीर मार रहा है, जो उसकी फसलों को नष्ट करने के लिए खेतों में घुस गया. इस मामले में कोर्ट ने मौत को दुर्घटना बताया क्यों की आरोपी का उद्देश्य आपराधिक नहीं था और उससे गलती हुई थी.
यदि कोई गैरकानूनी कार्य करते समय दुर्घटना होती है, तो यह IPC की धारा 80 के प्रावधान के अंतर्गत नहीं आएगा. जोगेश्वर वी. सम्राट के मामले में, आरोपी पीड़ित को घूंसा मार रहा था, लेकिन गलती से उसकी पत्नी, जो अपने 2 महीने के बच्चे को पकड़े हुए थी, उसपर वार कर दिया, झटका बच्चे के सिर में लगा, जिससे उसकी मौत हो गई. यह माना गया कि भले ही बच्चे को दुर्घटना से चोट लगी थी, लेकिन यह कार्य वैध नहीं था, जिसे कानूनी तरीकों से या वैध तरीके से नहीं किया गया था.