Advertisement

Abortion से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में राज्य के डॉक्टरों को जानकारी नहीं! HC ने यूपी सरकार को दिया ये आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि राज्य में डाक्टरों को गर्भपात के मामलों (Abortion Cases) में अपनाई जाने वाली कानूनी प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं है. हाईकोर्ट ने राज्य के मुख्य स्वास्थ्य सचिव को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों व एमटीपी कानून के अनुसार SOP जारी करने को कहा है.

Written By Satyam Kumar | Updated : September 28, 2024 7:31 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि राज्य में डाक्टरों को गर्भपात के मामलों (Abortion Cases) में अपनाई जाने वाली कानूनी प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं है. अदालत ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव को इसकी जानकारी के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी करने का निर्देश दिया है, जिसका पालन करना सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और इनके द्वारा गठित किए जाने वाले बोर्ड को करना पड़ेगा.

अबार्शन से जुड़ी प्रक्रियाओं के बारे में डॉक्टरों को जानकारी नहीं!

इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस शेखर बी सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने यौन अपराध की एक नाबालिग पीड़िता और उसके परिवार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.

Advertisement

अदालत ने कहा,

Also Read

More News

हमारे पास आने वाले अनेक मामलों में जहां याचिकाकर्ता ने गर्भपात कराने का अनुरोध किया था, हमने पाया कि जिलों के सीएमओ समेत मेडिकल कॉलेज और पीड़िता की जांच के लिए गठित बोर्ड में नियुक्त डाक्टरों को पीड़िता की जांच और गर्भपात के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की उचित जानकारी नहीं है’’

अदालत ने कहा कि गर्भपात के लिए कानून और उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णयों में बताई गई प्रक्रिया का अनुपालन आवश्यक है. अदालत ने मुख्य स्वास्थ्य सचिव को एक एसओपी जारी कर डॉक्टरों को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) के बारे में बताने को कहा है.

Advertisement

पूरा मामला क्या है?

याचिकाकर्ताओं ने नाबालिग लड़की का गर्भपात कराने का अनुरोध करते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. अदालत ने एक मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश दिया था जिसने अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी. इस रिपोर्ट में यह बताया गया कि गर्भ करीब 29 सप्ताह का है और इस चरण में गर्भपात करने या पूरे समय तक गर्भ बने रहने से पीड़िता को मानसिक और शारीरिक नुकसान पहुंचेगा. हालांकि पीड़िता और उसका परिवार गर्भपात कराना चाहते थे, अदालत ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली है.