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18 साल से कम उम्र का व्यक्ति धर्म परिवर्तन के लिए सहमति नहीं दे सकता: Allahabad HC

Allahabad High Court ने 18 वर्ष से कम आयु की मुस्लिम युवती द्वारा धर्म परिवर्तन कर हिंदू युवक से विवाह करने के मामले को स्वीकार नहीं किया है. हाईकोर्ट ने युवती के परिजनों की ओर से युवक के खिलाफ दायर कराए पॉक्सो और दुष्कर्म के मामले को रद्द करने से इंकार कर दिया है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : April 12, 2023 8:20 AM IST

नई दिल्ली: Allahabad High Court ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि 18 साल से कम उम्र का व्यक्ति धर्म परिवर्तन के लिए सहमति नहीं दे सकता है.

प्रेम विवाह के मामले में मुस्लिम युवती के परिजनों द्वारा युवक के खिलाफ दर्ज कराए मामले को लेकर आरोपी युवक की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीआरपीसी 482 के तहत अपराधिक विविध याचिका दायर की गई थी.

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याचिका में युवक ने उसके खिलाफ पॉक्सो और दुष्कर्म की धाराओं में दायर की गई पुलिस की चार्जशीट और निचली अदालत के संज्ञान लेने के आदेश को चुनौती दी गई थी.

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Justice Umesh Chandra Sharma ने आरोपी युवक की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि 18 साल से कम उम्र का व्यक्ति धर्म परिवर्तन और शारीरिक संबंध के लिए सहमति नहीं दे सकता.

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18 वर्ष से कम आयु

इस मामले में जब आरोपी हिंदू युवक ने मुस्लिम युवती को अपने साथ प्रेम विवाह के लिए भगाकर ले गया था उस समय उसकी आयु 17 साल और 8 माह थी.

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आरोपी युवक की अपराधिक विविध याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मामले में पीड़िता का स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र स्पष्ट करता है कि घटना के समय उसकी उम्र 18 वर्ष से कम थी, और इस तरह एक नाबालिग के रूप में वह धर्म परिवर्तन या यौन संबंध के लिए कानूनी रूप से सहमति नहीं दे सकती है.

अदालत ने कहा कि घटना और कथित धर्मांतरण के समय वह अवयस्क थी, इसलिए पूर्वोक्त धर्मांतरण प्रमाण पत्र की कोई प्रासंगिकता नहीं है.

पीठ ने कहा कि CrPC की 482 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने के लिए इस हाईकोर्ट द्वारा हस्तक्षेप के लिए कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बना सकता.

ये है मामला

उत्तरप्रदेश के सौरव अपने पड़ोस में रहने वाली एक मुस्लिम युवती को लेकर भाग गया था. इस मामले में मुस्लिम युवती के परिजनों की ओर से 1 मार्च, 2022 को एफआईआर दर्ज कराई गयी.

मुकदमे में पिता ने अपनी बेटी की उम्र 17 वर्ष बताते हुए नाबालिग बेटी के अपहरण का मामला दर्ज कराया. पुलिस ने जांच के बाद आरोपी युवक के खिलाफ आईपीसी की धारा 363, 366, 376 और पॉक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज करते हुए अदालत में चार्जशीट पेश की.

जांच के बाद आवेदक के खिलाफ पुलिस की ओर से दायर चार्जशीट में भी पुलिस ने पॉक्सो के साथ दुष्कर्म के आरोप तय किए. अतिरिक्त जिला न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम) ने भी पुलिस की चार्जशीट को स्वीकार करते हुए संज्ञान लिया.

युवती ने किया था धर्म परिवर्तन

आरोपी युवक ने पुलिस की ओर से दुष्कर्म और पॉक्सो अधिनियम के तहत दायर चार्जशीट और अदालत के संज्ञान के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका में कहा गया कि पुलिस ने चार्जशीट बिना ​उचित जांच के प्रस्तुत की गई है.

याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा कि 15 मार्च 2022 को जब उसने पीड़िता से विवाह किया उससे पूर्व ही इस मामले की पीड़िता ने खुद को इस्लाम से हिंदू धर्म में परिवर्तित कर लिया था.

याचिकाकर्ता युवक की ओर से हाईकोर्ट के समक्ष अपने पक्ष में विवाह प्रमाण पत्र की एक प्रति के साथ पीड़िता द्वारा दायर एक रिट याचिका भी पेश की.

इस मामले में युवती ने भी युवक के पक्ष में बयान देते हुए स्वीकार किया कि उसने अपनी मर्जी से शादी की और उसके साथ रहना चाहती है.

युवती ने अपने 164 के बयान में भी मजिस्ट्रेट को बताया कि उसकी उम्र 18 साल है, और वह अपनी मर्जी और इच्छा से युवक के साथ गई थी और वह बिना किसी दबाव के आरोपी युवक के साथ शादी करना और रहना चाहती है.

युवती ने अपना मेडिकल चैकअप कराने से इंकार कर दिया था.

हाईकोर्ट में परिजनों की ओर से युवक की ओर से दायर याचिका का विरोध किया गया. परिजनों ने जवाबी हलफनामें में कहा घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी और उसका अपहरण कर लिया गया था.

युवती के परिजनों ने जवाब में कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत आरोप पत्र दायर किया गया है और पॉक्सो एक्ट से संबंधित उपलब्ध कराए गए रिकॉर्ड के आधार पर और सबूतों के आधार पर जज ने मामले का संज्ञान लिया है.

हाई कोर्ट का निर्णय

दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने उचित जांच के बाद ही चार्जशीट दायर की है और अदालत ने भी सबूतो के आधार पर संज्ञान लिया है.

अदालत ने कहा कि इसलिए, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है. इसलिए, अदालत ने कार्यवाही को रद्द करने के लिए आवेदक की याचिका को खारिज कर दिया है।

अदालत ने कहा कि इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए और न्याय के सभी पक्षों को सुरक्षित करने के लिए, इस अदालत को अपने अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना चाहिए.