रातों रात नही हटाए जा सकते 50 हजार लोग, हल्द्वानी मामले पर SC ने लगाई UTTARAKHAND HIGH COURT के आदेश पर रोक
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हल्द्वानी में भारतीय रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट में प्रशासन द्वारा की जा रही कार्रवाई को लेकर हैरानी जताते हुए कहा है कि इस तरह से हजारों लोगों को आप 7 दिन का नोटिस देकर खाली करने के लिए कैसे कह सकते है.
हाईकोर्ट के आदेश पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के साथ ही विवादित जमीन पर किसी तरह के निर्माण या विकास कार्य करने पर रोक लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार और रेलवे को नोटिस जारी करते हुए मामले की अगली सुनवाई 7 फरवरी को तय की है.
उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के बाद हल्द्वानी में भारतीय रेल की जमीन पर रहने वाले 4,000 से अधिक परिवारों को बेदखल होने का खतरा मंडरा रहा था.
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जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने Abdul Mateen Siddiqui की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा रहे है लेकिन हम कार्रवाई पर रोक नहीं लगा रहे है.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन पर किसी तरह का निर्माण या विकास करने पर भी रोक लगा दी है.
फिलहाल नहीं होगी बेदखली
सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे की उस दलील को स्वीकार करने से इंकार कर कर दिया है कि रेलवे की जमीन से सभी को तुरंत बेदखल करने दिया जाए.
मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि विवादित भूमि पर प्रभावित करीब 6 दशक से रह रहे है और उनके कब्जे में कई दशक से है. कईयों ने भूमि का टाईटल तक क्लेम किया है. ऐसे में उन्हे एकदम से अपनी इस तरह नहीं हटाया जा सकता.
मानवीय मुद्दे का निस्तारण जरूरी
पीठ ने कहा कि इस मामले में मानवता के नाते सभी पुनर्वास का एक बड़ा मानवीय मुद्दा शामिल है.
पीठ ने कहा कि इस मामले में हमें जो बात परेशान कर रही है कि लोगों ने यहां पर जमीन नीलामी में खरीदी है और 1947 से ही यहां पर कब्जा किए हुए है और उन्होंने जमीनों के टाइटल भी प्राप्त कर लिए है. ऐसी स्थिति में आप इस मामले को कैसे निपट रहे है ये परेशान करने वाला है.
पीठ ने कहा कि रेलवे इस जमीन का अधिग्रहण कर सकती है लेकिन जो लोग 60—70 साल से इस जमीन पर रह रहे है उनके लिए पुनर्वास की जरूरत है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अतिक्रमण से जुड़े कई स्पष्ट मामलों में जहां लोग अधिकार नहीं रखते है, प्रभावितों के लिए सरकार द्वारा पुनर्वास किया गया है. इस मामले में भी एक सॉल्यूशन करने की जरूरत है.
पुनर्वास के बिना विकास
रेलवे की और से ASG ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि इस मामले में रेलवे की जमीन पर 4365 अवैध निर्माण हैं और उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रेलवे के स्पेशल एक्ट के तहत अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है.
रेलवे के जवाब पर पीठ ने कहा कि भले ही यह जमीन रेलवे की हो, लेकिन कई लोग वहां पर 1947 से पहले से हैं. उन्होंने लीज पर जमीन ली और मकान बनाए, किसी ने नीलामी में खरीदा उनका क्या होगा.
पीठ ने कहा कि विकास की अनुमति दी जानी चाहिए, लेकिन जो लोग इतने लंबे समय से वहां रह रहे है उनके लिए पुनर्वास किया जाना चाहिए.
क्या है मामला
मामले की शुरुआत वर्ष 2013 में हुई. जब उत्तराखंड हाई कोर्ट में हल्द्वानी में बह रही गोला नदी में अवैध खनन को लेकर एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी.
गोला नदी हल्द्वानी रेलवे स्टेशन और रेल पटरी के साथ होते हुए बहती है. हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि रेलवे की भूमि पर अवैध रूप से बनाई गई गफूर बस्ती के लोग गोला में अवैध खनन करते हैं. इसकी वजह से रेल की पटरियों को और गोला पुल को खतरा है.
मामले में आगे बढ़ने पर रेलवे ने अपनी जमीन की स्थिति रिपोर्ट तैयार कर रेलवे की ओर से 2.2 किलोमीटर लंबी पट्टी पर 4,365 अतिक्रमणों की पहचान की. इस अतिक्रमण क्षेत्र में 04 सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, 01 बैंक, 02 ओवरहेड पानी के टैंक, 10 मस्जिदें और चार मंदिर के साथ करीब दो दर्जन से अधिक दुकानें शामिल है.
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को अपने आदेश में हल्द्वानी रेलवे स्टेशन की 78 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए. हाईकोर्ट ने अतिक्रमणकारियों को एक हफ्ते का नोटिस देकर हटाने के आदेश दिए थे.
हाईकोर्ट ने पुर्नवास के बजाए पहले अतिक्रमण हटाए जाने के बाद पुनर्वास पर विचार करने की बात कही थी.
क्या है स्थिति
यहां रह रहे कई परिवार दावा करते है कि वे यहां पर 1910 के बाद से बनभूलपुरा में गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर कॉलोनियों के "कब्जे वाले इलाकों" में रह रहे हैं.
अतिक्रमण क्षेत्र में करीब 40 से 50 हजार लोगों की जनसंख्या है, जिनमें से 90% मुस्लिम हैं, स्थानीय निवासियों के अनुसार, 78 एकड़ क्षेत्र में पांच वार्ड हैं और लगभग 25,000 मतदाता हैं. बुजुर्ग, महिलाओं और बच्चों की संख्या 15,000 के करीब है.
20 दिसंबर के HC के आदेश के बाद, समाचार पत्रों में नोटिस जारी किए गए थे, जिनमें लोगों को 9 जनवरी तक अपना घरेलू सामान हटाने का निर्देश दिया गया था. प्रशासन ने 10 एडीएम और 30 एसडीएम-रैंक के अधिकारियों को प्रक्रिया की निगरानी करने का निर्देश दिया है.