हत्या के 28 साल बाद पता चला हत्या के समय दोषी था नाबालिग बच्चा, Supreme Court ने दोषी को तत्काल रिहा करने का दिया आदेश
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1994 में पुणे के राठी परिवार हत्याकांड मामले में मौत की सजा पाए दोषी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश उन तथ्यों के आधार पर दिया है जिनसे ये साबित हुआ है कि हत्या के समय दोषी नारायण चेतनराम चौधरी मात्र 12 वर्ष की आयु का एक नाबालिग बच्चा था.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिहा करने के आदेश देने तक दोषी जेल में 28 साल की सजा काट चुका है. चौधरी को दो बच्चों और एक गर्भवती महिला की हत्या करने के मामले में दोषी घोषित करते हुए मौत की सजा सुनाई गई थी.
जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने दोषी के दावे को कि अपराध के समय उसकी आयु मात्र 12 वर्ष थी और वह किशोर की अवस्था में था को सही माना है.
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पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने समय दोषी नारायण चेतनराम चौधरी की उम्र 20—22 वर्ष दर्ज की थी, वही मुकदमा दर्ज होने से लेकर निचली अदालतो से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की गई अपील में भी सभी अदालतों में उसकी उम्र 20 से 22 साल के बीच दर्ज की गई.
राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका
मौत की सजा की पुष्टि होने के बाद दोषी चौधरी और उसके दो सहयोगियों में से एक जीतेंद्र नैनसिंह गहलोत ने राष्ट्रपति को दया याचिका दायर की.
अक्टूबर 2016 में राष्ट्रपति ने गहलोत की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया, जबकि चौधरी ने अपनी दया याचिका वापस ले ली और इसके बजाय अपराध के समय नाबालिग होने का दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की.
सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर होने के बाद अदालत के आदेश से दोषी चौधरी का स्कूल रिकॉर्ड के जांच के आदेश दिए गए. अपराध महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था जबकि दोषी मूलत: राजस्थान से निवास करता था. बाद में वह पुणे शिफ्ट हुआ था.
इस आधार पर दोषी नारायण चौधरी अपनी उम्र साबित नहीं कर सका क्योंकि अपराध महाराष्ट्र में था जहां उसने केवल डेढ साल स्कूल में पढ़ाई की थी.
राजस्थान में मिले सबूत
बाद में वर्ष 2015 में राजस्थान से मिले स्कूल के रिकॉर्ड के अनुसार उसकी उम्र निर्णायक रूप किशोर के रूप में साबित हुई. जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पुणे के प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश को चौधरी की उम्र की जांच करने का निर्देश दिया, जिन्होंने सीलबंद लिफाफे में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए थे.
जिला जज ने राजस्थान के बीकानेर जिले के श्रीडूंगरगढ तहसील के राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय, जलाबसर से 30 जनवरी 2019 को उसके पढाई के कागजात हासिल किए.
स्कूल के दस्तावेजो और प्रमाण पत्रों अनुसार दोषी की उम्र अपराध के समय 12 वर्ष 6 माह होना निर्धारण किया गया. स्कूल रिकॉर्ड में नारायण राम को निरानाराम दर्शाया गया था.
12 वर्ष 6 माह
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस इंदिरा बनर्जी और संजीव खन्ना की पीठ ने पुणे जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा की गई जांच रिपोर्ट को मई 2019 में अवकाश पीठ के सुनवाई करते हुए लिफाफे केा खोला. जिला एवं सत्र न्यायाधीश पुणे की रिपोर्ट में भी दोषी नारायण चेतनराम चौधरी की उम्र अपराध के समय 12 वर्ष 6 माह होना पाया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जुवेनाईल जस्टिस एक्ट के अनुसार किसी बाल अपराधी को अधिकतम 3 वर्ष से अधिक कैद में नहीं रखा जा सकता है. इसलिए इस मामले में दोषी पहले ही 28 साल की सजा काट चुका है इसलिए उसे तत्काल रिहा किया जाए,
सभी मामलो पर गौर करने के बाद सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्य पीठ ने दोषी नारायण चेतनराम चौधरी की अपराध के समय उम्र 12 वर्ष मानते हुए तत्काल रिहा करने का आदेश दिया.