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2002 गुजरात दंगे: नरोदा हिंसा मामले में माया कोडनानी सहित सभी आरोपी बरी

इस मामले में कुल 86 आरोपी बनाए गए थे, जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई, जबकि एक को अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 169 के तहत साक्ष्य के आभाव में पहले आरोपमुक्त कर दिया था. ट्रायल शुरू होने से लेकेर फैसले तक कुल छह अलग-अलग जजों ने मामले की सुनवाई की है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : April 21, 2023 9:28 AM IST

नई​ दिल्ली: अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने गुरुवार को 2002 के नरोदा गाम नरसंहार मामले में मुख्य आरोपी और भाजपा की पूर्व विधायक माया कोडनानी सहित सभी 68 आरोपियों को बरी कर दिया.

विशेष अदालत की जज शुभदा बक्शी ने कोडनानी, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के पूर्व नेता जयदीप पटेल और बजरंग दल के पूर्व सदस्य बाबू बजरंगी सहित सभी आरोपियों को किया है.

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गोधरा स्टेशन के पास भीड़ के साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बोगी में आग लगाने के विरोध में बुलाए गए बंद के दौरान 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के नरोदा गाम क्षेत्र में दंगे भड़क गए थे. ट्रेन की बोगी में आगजनी की घटना में कम से कम 58 यात्री, जिनमें ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे, वे सभी जलकर मर गए थे.

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नरोदा गाम नरसंहार में मुस्लिम समुदाय के 11 सदस्य मारे गए थे. फरवरी 2002 में गुजरात के विभिन्न हिस्सों में इतिहास के सबसे भयानक सांप्रदायिक दंगे हुए थे. गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में आग लगने के बाद नरोदा गाम का मामला फरवरी 2002 में हुए नौ प्रमुख दंगों के मामलों में से एक था.

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अभियोजन पक्ष का आरोप था कि कोडनानी, पटेल और बजरंगी ने स्थानीय लोगों के साथ नरोदा गाम के मुस्लिम मोहल्ले में मुसलमानों के घरों में आग लगा दी थी. बीजेपी, बजरंग दल और विहिप के नेताओं पर दंगाइयों को आसपास के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मारने के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था.

घटना के तुरंत बाद, मामले की जांच के लिए जस्टिस नानावती की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया. समिति ने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला कि पुलिस ने नरोदा गाम क्षेत्र में मुसलमानों की मदद नहीं की और कोडनानी, पटेल, बजरंगी आदि नेताओं ने बदमाशों को उकसाया.

पीड़ित पक्ष करेगा हाईकोर्ट में अपील

विशेष अदालत के फैसले को दंगो के पीड़ितो के परिजनों की ओर गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की जायेगी. पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता शहशाद पठान ने कहा कि बरी करने के आदेश को गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी.

अधिवक्ता पठान ने कहा, “हम उन आधारों का अध्ययन करेंगे जिसपर विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला किया और आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे. अधिवक्ता ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़ितों को न्याय से वंचित कर दिया गया है. फिर सवाल यह है कि पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में 11 लोगों को किसने जलाया?

13 साल तक 6 जजो ने की सुनवाई

फरवरी 2002 में हुए नरोदा गाम नरसंहार मामले की सुनवाई अहमदाबाद की ​विशेष अदालत में की गई. वर्ष 2010 में जब मामले की ट्रायल शुरू होने से लेकेर फैसले तक कुल छह अलग-अलग जजों ने मामले की सुनवाई की है.

साल 2010 में जब मुकदमा शुरू हुआ, तब एस.एच. वोरा पीठासीन जज थे. बाद में उन्हें गुजरात हाई कोर्ट में पदोन्नत किया गया. उनके बाद मामले को संभालने वाले विशेष न्यायाधीशों में ज्योत्सना याग्निक, के.के. भट्ट और पी.बी. देसाई शामिल थे. ये सभी मुकदमे के लंबित रहने के दौरान सेवानिवृत्त हो गए. विशेष न्यायाधीश एम.के. दवे अगले जस्टिस थे लेकिन मुकदमे के समापन से पहले उनका तबादला कर दिया गया.

86 आरोपी, 18 की मौत

इस मामले में कुल 86 आरोपी बनाए गए थे, जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई, जबकि एक को अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 169 के तहत साक्ष्य के आभाव में पहले आरोपमुक्त कर दिया था.

नरोदा गाम में नरसंहार 2002 के उन नौ बड़े सांप्रदायिक दंगों के मामलों में से एक था, जिसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की नियुक्त एसआईटी ने की थी और जिसकी सुनवाई विशेष अदालतों ने की थी.

तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, जो अब केंद्रीय गृह मंत्री हैं, सितंबर 2017 में कोडनानी के बचाव पक्ष के गवाह के रूप में निचली अदालत में पेश हुए थे. बीजेपी की पूर्व मंत्री कोडनानी ने अदालत से अनुरोध किया था कि शाह को यह साबित करने के लिए बुलाया जाए कि वह गुजरात विधानसभा में और बाद में अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल में मौजूद थीं, न कि नरोदा गाम में, जहां नरसंहार हुआ था.