सेवानिवृत्ति से पूर्व नोटबंदी सहित 3 अहम मामलों पर फैसला सुनाएंगे जस्टिस अब्दुल नजीर
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट में दूसरे सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर करीब 6 साल के कार्यकाल के बाद 4 जनवरी 2023 को सेवानिवृत्त हो जाएंगे. शीतकालीन अवकाश के बाद जस्टिस नजीर के पास केवल 3 दिन का कार्यकाल होगा. इस दौरान वे नोटबंदी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे के साथ ही तीन अहम मामलों पर अपना फैसला सुनाऐंगे.
20 वर्ष की वकालत के बाद जज
5 जनवरी 1958 को कर्नाटक स्थित छोटे से गाँव बेलुवइ में जन्मे जस्टिस अब्दुल नजीर ने श्री धर्मस्थल मंजूनाथेश्वर लॉ कॉलेज, मैंगलोर से कानून की डिग्री हासिल की. डिग्री के बाद 1983 में एक वकील के रूप रजिस्टर्ड हुए और कर्नाटक हाईकोर्ट में ही प्रैक्टिस करने लगें.
कर्नाटक हाईकोर्ट में 20 वर्ष की वकालात के बाद उन्हे 2003 में एडिशनल जज नियुक्त किया गया. करीब एक वर्ष बाद ही उन्हे सितंबर 2004 में कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थायी जज के रूप में नियुक्ति दी गयी.
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सुप्रीम कोर्ट आने वाले तीसरे जज
फरवरी 2017 में उन्हे हाईकोर्ट जज से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया. वे देश की सर्वोच्च अदालत में नियुक्त होने वाले तीसरे ऐसे जज है जिन्हे हाईकोर्ट से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया. जस्टिस नजीर की नियुक्ति के जरिए सुप्रीम कोर्ट में सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के उचित प्रतिनिधित्व को बनाए रखा गया.
जस्टिस नज़ीर की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में ऐसे समय में कि गयी थी जब देश की सर्वोच्च अदालत में एक भी मुस्लिम जज नही होने को लेकर आलोचना चरम पर थी.
जस्टिस नजीर आगामी 4 जनवरी को सेवानिवृत होने जा रहे है. सेवानिवृत होने से पहले जस्टिस नजीर इन महत्वपूर्ण मामलों पर अपना फैसला सुनाऐंगे.
1. नोटबंदी का मामला
सुप्रीम कोर्ट 8 नवंबर 2016 में भारत सरकार द्वारा की गयी नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है.जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता में 5 सदस्य संविधान पीठ ने विवेक नारायण शर्मा बनाम भारत संघ के मामले में सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा है.
नोटबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर अनेक याचिकाओं में सरकार के फैसले की संवैधानिकता पर सवाल उठाए गए और साथ ही लोगों को हुई दिक्कतों के सन्दर्भ में भी प्रश्न उठाए गए हैं.
7 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक नोटबंदी (Demonetisation) के सरकार के 2016 के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड को पेश करने का निर्देश देते हुए फैसला सुरक्षित रखा है.
2 जनप्रतिनिधियों के भाषणों पर प्रतिबंध
जस्टिस नजीर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान पीठ बुलंदशहर दुष्कर्म पीड़िता के पिता द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाएगी. इस मामले में पीठ को इस सवाल पर अपना फैसला सुनाना है कि "क्या मंत्रियों, विधायकों और अन्य सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा दिए गए बयानों और भाषणों पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) दिए गए प्रतिबंधों से अधिक प्रतिबन्ध लगाए जा सकते है या नहीं?"
गौरतलब है कि बुलंदशहर दुष्कर्म की घटना के बाद कई राजनीतिक जनप्रतिनिधियों ने घटना से लेकर दुष्कर्म से जुड़े विवादित बयान दिए थे.
15 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस पीठ में जस्टिस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी टी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना शामिल थे.
3. क्या फैसला सुरक्षित रखने के बाद सीआरपीसी की धारा 319 लागू की जा सकती है ?
18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य पीठ ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया कि 'क्या फैसला सुरक्षित रखने के बाद सीआरपीसी की धारा 319 लागू की जा सकती है.'
इस मामले में जस्टिस अब्दुल नज़ीर सुप्रीम कोर्ट कि 5-जज बेंच का नेतृत्व किया है. पीठ में जस्टिस अब्दुल नजीर के साथ जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बी वी नागरत्ना शामिल रहें. यह आपराधिक प्रक्रिया संहिता के व्याख्या से जुड़ा मामला है, जिसमें कई ज़रूरी प्रश्न उठाए गए हैं।
इस मामले सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठाया गया है कि "आपराधिक मामलों में एक बार निर्णय आरक्षित करने के बाद, क्या आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 319 का इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं?”
इस मामले में सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला आरक्षित कर लिया गया है।
प्रथम सप्ताह में फैसला
संभवतया जस्टिस नजीर इन तीनों मामलों जनवरी के प्रथम सप्ताह में फैसला सुना सकते है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में शीतकालीन अवकाश प्रारंभ हो गया है जो 17 दिसंबर से 1 जनवरी तक रहेंगा. अवकाश के बाद 2 जनवरी 2023 सोमवार को सुप्रीम खुलेगा.