गर्भवती महिला को नहीं निकाला जा सकता नौकरी से, जानिए गर्भवती महिला के क्या है अधिकार
नई दिल्ली, देश के संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक को ना केवल स्वतंत्रता से रहने का अधिकार है बल्कि उसे समान रूप से अपने अधिकारों को प्राप्त करने का भी अधिकार है. बौद्धिक रूप से मजबूत होते लोकतंत्र के साथ हमारे देश के संविधान ने महिलाओं को मजबूत करने को लेकर कई अधिकार दिए है.
आजादी के कई दशक तक नौकरी, व्यवसाय से लेकर कार्यस्थलों में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम होती थी. लेकिन 1990 के बाद लगातार महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बहुत तेजी से बढ़ी है आज देश के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरूषो से आगे बढ़ी है. इसका असर महिलाओं को मिलने वाले अधिकारों की विस्तृत चर्चा और बहस के जरिए नए कानूनों और प्रावधानों का भी जन्म हुआ.
मानव सभ्यता के संरक्षण को लेकर प्रकृति ने महिलाओं को एक विशेष जिम्मेदारी या कहे अधिकार दिया है. वह मां बनने का अधिकार है जो एक महिला से दुनिया का कोई शासन या देश इस अधिकार को नही छिन सकता है.दुनियाभर में महिलाओं की मजबूत होती स्थिती और महिलाओं के संगठित प्रयासों ने समाज में नए बदलाव किए है.और इसी का परिणाम है गर्भवती महिलाओं को मिले अधिकारों की एक श्रेणी का. आईए जानते है गर्भवती महिलाओं के अधिकारों के बारे में—
Also Read
1961 में मातृत्व अवकाश कानून
गर्भवती महिलाओं को लेकर 1961 में बना मातृत्व अवकाश कानून पहला ऐतिहासिक बदलाव था जिसके द्वारा हमारे देश में कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान कई अधिकार दिए गए.
नहीं निकाला जा काम से
इस कानून के अनुसार किसी भी महिला कर्मी को गर्भवती होने के चलते नौकरी से नहीं निकाला जा सकता और ना ही उसके वेतन में कटौती की जा सकती है.किसी भी महिला को जिसका प्रसव या गर्भपात हुआ हो, उसे प्रसव या गर्भपात के बाद 6 सप्ताह तक कार्य पर आने के लिए मजबूर नहीं किया सकता है.
कोई भी महिला कर्मचारी जो किसी भी संस्थान में एक वर्ष में 80 दिन तक कार्य कर चुकी है और वह गर्भवती है तो वह मातृत्व अवकाश का हक रखती है. इसके साथ कोई भी महिला कर्मचारी जो उस संस्थान में स्थायी या अस्थायी कर्मचारी ही क्यों ना हो, उसे मातृत्व अवकाश का लाभ दिया जाएगा.
नियुक्ति से नहीं किया जा सकता इंकार
कोई महिला जो गर्भवती है और वह नौकरी की तलाश कर रही है या नौकरी के लिए आवेदन करना चाहती है या करने के बाद उसे नियुक्ति पत्र मिला है और उसका चयन हो गया है तो उसे जॉइनिंग करने से नहीं रोका जा सकता है.गर्भावस्था को कारण बताकर एक महिला को नौकरी देने से मना करना बतौर नागरिक उसके अधिकारों का उल्लंघन है, और ना ही देर से जॉइनिंग करने के लिए कहा जा सकता है.
इंडियन बैंक द्वारा भर्ती में तीन महीने से अधिक की गर्भवती महिलाओं को नई नियुक्ति के लिए अयोग्य करार देने पर काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था और कई आयेाग और अदालतों ने भी नोटिस जारी किया था.
मातृत्व अवकाश का अधिकार
इस कानून के अनुसार देश की प्रत्येक कार्यरत गर्भवती महिला को 90 दिनों के मातृत्व अवकाश का अधिकार होगा, जिसका पूर्ण भुगतान संस्थान, विभाग या कंपनी द्वारा किया जाएगा. इस अवकाश को महिला अपनी सहूलियत के अनुसार ले सकती है. लेकिन इस अवकाश के लिए 7 सप्ताह पूर्व लिखित नोटिस या आवेदन करना होगा.
विभाग, संस्था या कंपनी को गर्भवती होने की सूचना मिलने के बाद गर्भवती महिला कर्मचारी के वेतन से कोई कटौती नहीं की जा सकती. प्रसव या गर्भपात के बाद भी महिला की तबीयत ठीक नहीं हो या गर्भवती रहते हुए भी वह अत्यधिक कमजोर या बीमार हो, ऐसी स्थिति में मातृत्व अवकाश के अलावा भी उस महिला को एक माह के अतिरिक्त अवकाश दिया जाएगा.
गर्भपात या नसबंदी ऑपरेशन के लिए भी महिला 6 सप्ताह के सवैतनिक अवकाश का अधिकार रखती है.
प्रसव के बाद
गर्भवती महिला को प्रसव के बाद भी कई सुविधाएं मिली है. जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण है प्रसव या गर्भपात के दस सप्ताह तक महिला हल्का कार्य करने के लिए अनुरोध कर सकती है. प्रसव के बाद 15 माह तक महिला को कार्यालय में ही दो बार नर्सिंग ब्रेक दिया जाएगा.और प्रत्येक गर्भवती महिला कर्मचारी को संस्थान द्वारा मेडिकल बोनस के रूप में 3500 रुपए देने होंगे.
कानून के अनुसार काम के बीच बच्चे की देखभाल के लिए नियमित दो ब्रेक लेने की अनुमति है। नौकरी करने वाली महिलाओं को दोबारा काम पर लौटने के बाद जब तक बच्चा पंद्रह महीने का नहीं होता है उसे नर्सिंग ब्रेक लेने की अनुमति होती है। महिलाओं को ब्रेस्ट फीडिंग के लिए सुरक्षित जगह उपलब्ध करने का भी प्रावधान हैं
नहीं बना सकते दबाव
भारत में मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के अनुसार कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान मातृत्व अवकाश का प्रावधान है. 2017 के संशोधित एक्ट के अनुसार भारत में यदि कोई महिला नौकरी करती है तो उसे प्रेगनेंसी के दौरान 26 हफ्ते का वेतन सहित अवकाश का अधिकार है. इस अवकाश को वह डिलीवरी से आठ हफ्ते पहले भी ले सकती है और बाकी का लाभ बच्चे के जन्म के बाद ले सकती है. किसी भी महिला कर्मचारी को उसकी गर्भावस्था की वजह से न तो छुट्टी देने से मना किया जा सकता है और न ही जबरन छुट्टी लेने के लिए कहा जा सकता है.
क्रेच की सुविधा
वर्ष 2017 के मैटरनिटी बेनिफिट संशोधित एक्ट के अनुसार देश में 50 से अधिक महिला कर्मचारी वाली प्रत्येक कंपनी, संस्था, समूह या विभाग में क्रेच यानी शिशुगृह बनाना अनिवार्य है. प्रत्येक कंपनी के लिए शिशुगृह बनाना आवश्यक है.इसी के चलते देशभर की अदालतों से लेकर संस्थानों में यह सुविधा शुरू हुई है.
सजा का प्रावधान
किसी भी गर्भवती महिला को केवल गर्भवती होने के चलते अगर नौकरी से निकाला गया है तो उस संस्था के मालिक या मुख्य अधिकारी को तीन साल तक की सजा हो सकती है.
कोई संस्थान, कंपन, विभाग या नियोक्ता गर्भवती महिला के वेतन में किसी तरह की कटौती करता है तो ऐसा करने पर उस संस्था के जिम्मेदार अधिकारी को कम से कम तीन महिने की सजा और 5 हजार के जुर्माने तक की सजा दि जा सकती है.