यदि आप के खिलाफ FIR दर्ज हुई है तो क्या करें? जानिये क़ानूनी प्रक्रिया
नई दिल्ली: अक्सर कुछ लोग साजिश के तहत बेगुनाह लोगों के खिलाफ FIR (First Information Report) लिखवा देते हैं. ऐसी प्राथमिकी यानि एफआईआर निश्चित तौर पर आपको दिक्कत में डाल सकती हैं. कई मामलों में अक्सर पाया गया है कि दर्ज करवायी गई एफआईआर कहीं न कहीं विद्वेशपूर्ण भाव से प्रेरित / ग्रसित होती है।
जब कभी आपके पास पुलिस थाने से कोई फोन कॉल आता है और आपको पता चलता है कि आपके विरुद्ध एफआईआर दर्ज हुई है और आपको थाने आने के लिये कहा जाता है तो ऐसे में आपको क्या करना चाहिए और इससे कैसे बचें. क्या है कानूनी प्राविधान, आइये जानते है .
सर्वप्रथम, आप यह पता करने कि कोशिश करें कि आपके खिलाफ किस थाने में एफआईआर दर्ज हुई है और फिर आप उस थाने में फोन कॉल के माध्यम से पता करें कि आप के खिलाफ किस अपराध में या किन -किन धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज हुई है और साथ ही साथ एफआईआर नम्बर प्राप्त करने कि कोशिश करें और उसके बाद एफआईआर कि एक कॉपी इंटरनेट से डाउनलोड करें.
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इन सभी जानकारी को प्राप्त करने के पश्चात वकील से संर्पक करें और उससे कानूनी सलाह लें, और जो भी मामला आपके विरुद्ध बनता हो उससे निजात पाने के लिए आप पुलिस थाने से या फिर न्यायालय से जमानत लेने के लिए आवेदन कर सकते है।
यदि आपके विरुद्ध गंभीर धाराओं में FIR दर्ज है तो अपने वकील के माध्यम से हाईकोर्ट में प्रार्थनापत्र लगायें. इस प्रार्थना पत्र के जरिए आप अपनी बेगुनाही के सबूत दे सकते हैं. आप वकील के माध्यम से साक्ष्य तैयार कर सकते हैं. अगर आपके पक्ष में कोई गवाह है तो उसका जिक्र जरूर करें, और अपने नाम से एक पत्र लिखें और दोंनों को एक साथ संलग्न कर न्यायालय के समक्ष ऐसे एफआईआर को खंडित करने के लिए आवेदन प्रस्तुत करें.
अग्रिम जमानत से जुड़े नियम
कानून में गिरफ्तारी के बाद ही नहीं अपितु गिरफ्तारी के पहले भी जमानत दिए जाने का प्रावधान है। दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code ) में ऐसी जमानत देने की शक्ति सेशन न्यायालय और उच्च न्यायालय को दी गई है। यह दोनों न्यायालय किसी अपराध में आरोपी को गिरफ्तारी के पहले ही जमानत दे सकते हैं। इस प्रावधान का मूल उद्देश्य असत्य रूप से मुकदमे में फंसाए गए आरोपी को जेल की पीड़ा से बचाना है।
अगर न्यायालय किसी मुकदमे में यह पाता है कि अभियुक्त को गलत और असत्य आधारों पर फंसा दिया गया है और मामले में प्रथम दृष्टया (prima facie) कोई आधार दिखाए नहीं देते हैं तब वह जमानत दे सकता है।
CrPC Section 482
ऐसा देखा गया है कि कुछ लोग आपसी मतभेद में एक दूसरे के खिलाफ पुलिस में झूठी या Fake FIR लिखवा देते हैं. जिसके खिलाफ झूठी FIR होती है वो पुलिस और कोर्ट के कानूनी झंझटों में फंस जाता है और उसका समय, धन इत्यादि बर्बाद होता है. लेकिन झूठी FIR के खिलाफ कुछ ऐसे तरीकें हैं जिनसे बचा जा सकता है.
इसमें वकील के माध्यम से हाईकोर्ट में आवेदन (Application) दिया जा सकता है. इसके साथ व्यक्ति अपनी बेगुनाही के सबूत भी दे सकता है. यानी CrPC की धारा 482 के तहत जिस बंदे के खिलाफ FIR कराई जाती है वह इसको चैलेंज करते हुए हाईकोर्ट से निष्पक्ष न्याय की मांग कर सकता है. इसके लिए वकील की सहायता से एप्लीकेशन को हाईकोर्ट में लगाया जाता है और झूठी FIR के खिलाफ प्रश्न किया जा सकता है.
हाईकोर्ट में CrPC की धारा 482 के तहत जब एप्लीकेशन दी जाती है और फिर सुनवाई होती है और अगर कोर्ट को लगता है कि आपने जो भी प्रमाण या सबूत पेश दिए हैं वो सही हैं, और वो आपकी बेगुनाही को साबित करते हैं तो कोर्ट उस FIR को खारिज करने का आदेश देती है, लेकिन अगर आप कोर्ट में पूर्ण रूप से सबूत नहीं दे पाते हैं जिससे आपकी बेगुनाही साबित हो तो कोर्ट एप्लीकेशन को खारिज कर देती है. जिससे फिर उस व्यक्ति के ऊपर आरोप लगाए जाते हैं और फिर विचारण (Trial) शुरू हो जाता है.