क्या हैं FIR से जुड़े आपके अधिकार और नियम, कैसे दर्ज कराए FIR
नई दिल्ली, देश के भीतर शांति बनाए रखने के लिए सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशो की राज्य पुलिस होती है. शांति बनाए रखने के लिए आम नागरिकों से जुड़े सामुहिक और निजी अपराध को लेकर जहां पुलिस को कई अधिकार दिए गए है वही आम नागरिकों को भी कई अधिकार दिए गए है.
क्या होती है FIR
एक आम नागरिक के साथ हुए किसी भी अपराध को राज्य तक पहुंचाने का पहली अधिकार एफआईआर ही है जिसे वह अपने निकटतम पुलिस स्टेशन या पुलिस अधिकारी को करता है. किसी तरह के आपराधिक घटना होने पर सबसे पहले हर व्यक्ति पुलिस में जानकारी दर्ज कराता है. इसको फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट (First Information Report) यानी एफआईआर कहा जाता है.
हमारे देश कानून के अनुसार आईपीसी की धारा 154 में एफआईआर दर्ज करने का तरीका आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है. ज्यादातर लोगों को एफआईआर दर्ज करने के नियम और इसके प्रोसेस के बारे में जानकारी नहीं होती है. तो चलिए हम आपको एफआईआर दर्ज कराने के नियम और इसके प्रोसेस के बारे में जानकारी दे रहे हैं-
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FIR का मतलब केवल पुलिस स्टेशन जाकर अपनी रिपोर्ट लिखवाना या दर्ज कराना नहीं होता है. आम जनता के लिए FIR से जुड़े कई नियम और अधिकार है.
एक लिखित दस्तावेज
फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट यानी FIR किसी भी अपराध या वारदात की पहली जानकारी जो कोई भी व्यक्ति पुलिस के पास दर्ज कराता है. यह एक लिखित दस्तावेज होता है जिसे शिकायत करने वाला अपने हाथ से लिखकर देता है. कई बार लिखने की स्थिति में नहीं होने पर पुलिस अधिकारी शिकायतकर्ता की शिकायत को लिखकर उसे पढकर सुनाता है.
पुलिस अधिकारी द्वारा लिखी गई शिकायत को पढकर सुनाए जाने के बाद शिकायतकर्ता अपने अंगूठा का निशान या हस्ताक्षर कर सत्यापित करता है. एक बार एफआईआर दर्ज होने के साथ ही यह लिखित दस्तावेज बन जाता है.
एक बात हमेशा ध्यान देने वाली बात है कि एक बार किसी पुलिस थाने में दर्ज की गयी एफआईआर को केवल अदालत द्वारा ही रद्द कराया जा सकता है या फिर राज्य की कैबिनेट से अप्रूवल के बाद ही समाप्त किया जा सकता है.
IPC की धारा 154 में FIR दर्ज करने की संपूर्ण प्रक्रिया
— FIR उस क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में दर्ज करवा सकते हैं, जिस क्षेत्र में अपराध की घटना घटी हो.
— शिकायतकर्ता द्वारा FIR नहीं लिखने की स्थिति में वह बोलकर लिखवा सकता है.
— किसी शिकायतकर्ता या व्यक्ति द्वारा किसी घटना की जानकारी मौखिक तौर पर देने पर पुलिस अधिकारी उसे लिखकर दर्ज करता है.
— शिकायतकर्ता का यह अधिकार है कि उस रिपोर्ट में क्या लिखा है इसकी जानकारी पढ़कर उसे सुनाई जाए. शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर करने पर उसकी सहमति मानी जाएगी.
— शिकायतकर्ता अपनी भाषा के अनुसार FIR दर्ज करवा सकता है.
— शिकायतकर्ता को FIR की एक प्रति निशुल्क प्राप्त करने का अधिकार है.
यहां एक बात गौर करने वाली है कि पुलिस कभी भी शिकायतकर्ता को एफआईआर की प्रति देने से इंकार नहीं कर सकती और ना ही प्रति देने शिकायतकर्ता से पैसे की मांग कर सकती है.