Civil Matters में अपील कैसे दायर करें, क्या है CPC के तहत इसकी प्रक्रिया? आइए जानते हैं
नई दिल्ली: अपील पीड़ित और अभियुक्त के लिए एक उपचारात्मक अवधारणा है, जिसे किसी अन्यायपूर्ण डिक्री/आदेश के खिलाफ एक उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय को संदर्भित करके न्याय प्राप्त करने के व्यक्ति के अधिकार के रूप में निर्धारित किया जाता है। अपील करने का अधिकार एक वैधानिक (statutory) अधिकार है। आइये जानते है कैसे कोई अपील दायर की जाती है।
अपील क्या है?
अपील नागरिकों का एक कानूनी अधिकार है, जो हमेशा अपीलीय न्यायालय में ही लगाया जाता है। अपील प्रथम एवं द्वितीय होगी अर्थात अपील प्रथम मूल डिक्री की होगी, द्वितीय अपीली डिक्री के विरुद्ध होगी, अपील की सुनवाई अपीलीय न्यायालय में कोई भी न्यायाधीश कर सकता है। अपील हमेशा किसी भी पीड़ित और अभियुक्त व्यक्ति द्वारा ही लगाई जा सकती है।
CPC Section 106 में बताया गया है कि अपील के लिए दो मुख्यत: न्यायलय होते हैं पहला जिला न्यायालय (District Court) और दूसरा राज्य हाईकोर्ट (State High Court)। प्रथम अपील के लिए हमेशा जिला जज न्यायालय या हाईकोर्ट होगा लेकिन द्वितीय अपील के लिए हमेशा उच्च न्यायालय ही होता है।
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अपील का प्रारूप (Form of Appeal)
प्रत्येक वाद के संस्थित (institute) करने के लिये एक वाद-पत्र (plaint) का प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है, निष्पादन (Execution) की कार्यवाही करने के लिये निष्पादन का आवेदन चाहिये, और ठीक उसी प्रकार अपील दाखिल करने के लिये जिस प्रपत्र की आवश्यकता पड़ती है उसे अपील का ज्ञापन (memorandum of appeal) कहते हैं। हर अपील, अपील के ज्ञापन के रूप में की जायेगी जो अपीलार्थी या उसके प्लीडर द्वारा हस्ताक्षरित होगी।
ज्ञापन के साथ उस डिक्री की प्रति होगी जिसके विरुद्ध अपील को जाती है और जब तक अपील न्यायालय ऐसा करने की छूट न दे दें तो उस निर्णय की प्रति लगानी होगी जिस पर वह डिक्री आधारित है। अब संशोधित नियमों के अनुरूप ज्ञापन के साथ निर्णय को एक प्रति संलग्न होगी। ज्ञापन में संक्षिप्त रूप (short form) से और विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत उस डिक्री (जिससे अपील की गयी है) के प्रति किये गये आक्षेपों के आधार पर लिखे जायेंगे, किन्तु ऐसे आधार की पुष्टि में कोई तर्क या विवरण नहीं होंगे और ऐसे आधार क्रम से संख्यांकित किये जायेंगे।
सिविल मामलों में अपील करने का अधिकार
सिविल प्रक्रिया संहिता कि धारा 96 में ये प्रावधान किया गया है कि किसी भी डिक्री (decree) के लिए एक पीड़ित पक्ष, जो एक न्यायालय द्वारा अपने मूल अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए पारित किया गया था, को इस उद्देश्य के लिए नामित उच्च प्राधिकारी (high authorities) को अपील करने का कम से कम एक अधिकार प्रदान किया जाता है, जब तक कि किसी भी कानून के प्रावधान न हों। सीपीसी की धारा 97, 98 और 102 कुछ शर्तों की गणना करती है जिसके तहत आगे अपील की अनुमति नहीं है, इसलिए अपील के मात्र एक अधिकार की ओर इशारा करती है।
अपील करने वाले मामलों की सामग्री
अपील एक ऐसी कार्यवाही है जहां एक उच्च मंच, कानून और तथ्य के प्रश्नों पर, निर्णय की पुष्टि करने, उलटने, संशोधित करने या मामले को अपने निर्देशों के अनुपालन (compliance) में नए निर्णय के लिए निचले फोरम को रिमांड करने के अधिकार क्षेत्र के साथ निचले कोर्ट के निर्णय पर पुनर्विचार करता है। अपील करने वाले मामलों की अनिवार्यता को 3 मामलों तक सीमित किया जा सकता है पहला मामला न्यायिक/प्रशासनिक प्राधिकारी द्वारा पारित एक डिक्री पर और दूसरा व्यथित व्यक्ति, जरूरी नहीं कि मूल कार्यवाही का एक पक्ष हो एंव तीसरा ऐसी अपीलों पर विचार करने के उद्देश्य से एक समीक्षा निकाय का गठन में सीनित किया जा सकता है ।
इन लोगों को अपील करने का अधिकार नहीं
किसी भी व्यक्ति को किसी निर्णय के विरुद्ध अपील करने का अधिकार तब तक नहीं है जब तक कि वह वाद का पक्षकार न हो, सिवाय न्यायालय की विशेष अनुमति के। अपील के अधिकार पर विचार करते समय ध्यान में रखा जाने वाला एक आवश्यक तत्व यह है कि क्या ऐसा व्यक्ति निर्णय/वाद से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है, जो प्रत्येक मामले में निर्धारित किए जाने वाले तथ्य का प्रश्न है।
कौन अपील कर सकता है?
वाद का कोई भी पक्ष किसी डिक्री से विपरीत रूप से प्रभावित होता है, या यदि ऐसा पक्ष मर जाता है, तो धारा 146 के तहत उसके कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा अपील किया जा सकता है। ऐसे पक्ष के हित का अंतरिती, जो जहां तक ऐसे हित का संबंध है, डिक्री द्वारा बाध्य है, बशर्ते उसका नाम वाद के अभिलेख (record) में दर्ज किया गया हो। एक नीलामी खरीदार धोखाधड़ी के आधार पर बिक्री को रद्द करने के आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है और कोई अन्य व्यक्ति, जब तक कि वह वाद का पक्षकार न हो, धारा 96 के अधीन अपील करने का हकदार नहीं है।