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Cheque Bounce के मामलों को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित किया जा सकता है - जानिए कैसे

चेक के अनादरण (Dishonour of Cheque) की शिकायत उस स्थान पर स्थित न्यायालय में दायर की जा सकती है जहां आदाता (Payee) का बैंक स्थित है.

Written By My Lord Team | Published : March 2, 2023 5:14 AM IST

नई दिल्ली: यदि बैंक द्वारा आपके चेक का अनादर (Dishonour of Cheque) हुआ है तो उसकी शिकायत उस स्थान पर स्थित न्यायालय में की जा सकती है. इस सम्बन्ध में परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act) 1881 की धारा 138 के अंतर्गत खाते में अपर्याप्त धनराशि के कारण हुए चेक बाउंस यानी चेक के अनादरण के संबंधित प्रावधान के बारे में बताया गया है.

इस धारा के तहत चेक के अनादरण (Dishonour of Cheque) की शिकायत उस स्थान पर स्थित न्यायालय में दायर की जा सकती है जहां आदाता (Payee) का बैंक स्थित है. धारा 138 के अंतर्गत दिया गया अपराध, जुर्माने के साथ-साथ कारावास से दंडनीय है, जहां जुर्माना चेक की राशि का दोगुना तक हो सकता है या दो साल तक की अवधि के लिए कारावास या दोनों ही हो सकता है.

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हाल ही में, हमारे देश के सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों के सन्दर्भ में एक अहम फैसला दिया तथा इन मामलों से जुड़ी कई अस्पष्टता को दूर किया है. पहले इस बात को लेकर काफी अस्पष्टता थी कि क्या धारा 138 के तहत दायर किया गया मामला, दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की धारा 406 के तहत मामला स्थानांतरित किया जा सकता है या नहीं.

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आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रश्न का एक सकारात्मक उत्तर देते हुए निर्णय दिया है कि धारा 138 के चेक बाउंस के मामलों को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित किया जा सकता है. यह फैसला माननीय जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजय कुमार की दो जजों की बेंच ने दिया है.

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क्या है मामला?

एक योगेश उपाध्याय ने नागपुर कोर्ट के समक्ष लंबित धारा 138 के दो मामलों को द्वारका कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act) 1881 की धारा 138 और 142 के तहत अटलांटा लिमिटेड, प्रतिवादी द्वारा उपाध्याय के खिलाफ सभी छह मामले दर्ज किए गए थे.

यह उपाध्याय का मामला था कि चूंकि सभी चेक एक ही लेन-देन से संबंधित हैं, इसलिए उचित होगा कि उनके अनादरण से संबंधित मामलों को एक साथ आजमाया और तय किया जाए.

वहीं, प्रतिवादी कंपनी ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि 1881 के अधिनियम की धारा 142 में मौजूद गैर-प्रतिवादी खंड (non-obstante clause) को ध्यान में रखते हुए दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की धारा 406 इन मामलों में लागू नहीं होगी यानि मामले को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों के तर्कों को सुना और निर्णय दिया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 142(1) में मौजूद गैर-प्रतिवादी खंड के बावजूद, धारा 406 के तहत आपराधिक मामलों को स्थानांतरित करने की इस न्यायालय की शक्ति 1881 के अधिनियम की धारा 138 के तहत अपराधों के संबंध में बरकरार है, यदि न्यायालय द्वारा यह पाया जाता है कि वह न्याय के हित में आवश्यक है.