क्या करे अगर आपको मिला चेक हो गया है बाउंस
नई दिल्ली, दुनियाभर में डिजिटल भुगतान सिस्टम शुरू होने के बावजूद आज भी चेक का उपयोग कम नहीं हुआ है. व्यापार का बड़े स्तर पर लेनदेन करने का आज भी चेक एक सुरक्षित तरीका है जिसे ज्यादातर व्यवसायी और कंपनियां भी अपना रही है.
बैंक में खाता खोलने के साथ ही एक चेक बुक भी जारी की जाती है जिसमें अलग अलग प्रयोग के लिए 25 से 100 तक चेक होते है. जब आप चेक बुक से किसी व्यक्ति या संस्था को किसी भी राशि का चेक जारी करते है तो यह एक तरह से आप अपनी बैंक को एक लिखित आदेश देते है कि आपके खाते से बैंक उस संस्था या व्यक्ति को चैक पर लिखी राशि का भुगतान करें.
कैसे होता है चेक बाउंस
चेक भरना आसान है लेकिन आपका चेक बाउंस होना आपको कानूनी मुश्किल में डाल सकता है. “चेक बाउंस” या “डिसऑनर्ड चेक” शब्द का उपयोग तब किया जाता है जब आपके द्वारा दिया गया चेक बैंक द्वारा भुगतान करने से इंकार कर दिया जाए.
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चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन अकाउंट में बैलेंस न होना या कम होना, सिग्नेचर बदलना, शब्द लिखने में गलती, अकाउंट नंबर में गलती, ओवर राइटिंग आदि को इसके प्रमुख कारण माना जाता है. इनके अलावा चेक की समय सीमा समाप्त होना, चेक कर्ता का अकाउंट बंद होना, जाली चेक का संदेह, चेक पर कंपनी की मुहर न होना और ओवरड्राफ्ट की लिमिट को पार करना आदि वजहों से भी चेक बाउंस हो सकता है.लेकिन जिसके नाम से आपने चेक दिया है वह व्यक्ति चेक बाउंस के लिए आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है.
कब होता है अपराध
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 के अनुसार,अगर आपके बैंक अकाउंट में पर्याप्त पैसे नहीं है तो बैंक इस चेक को डिसऑनर कर देता है ऐसी स्थिति में यह एक अपराध का आधार हो सकता है. इस स्थिति में चेक प्राप्तकर्ता के पास यह अधिकार है कि चेक बाउंस हुए चेक को वह तीन महीने के भीतर चेक को फिर से पेश कर सकता है या कानूनी रूप से मुकदमा चला सकता है.
अगर चेक प्राप्तकर्ता दुबारा चैक लगाने की बजाए कानूनी मुकदमे की और बढ़ना चाहता है तो उसे चेक देने वाले को बैंक के “चेक रिटर्न मेमो” मिलने की तारीख से 30 दिनों के भीतर एक कानूनी नोटिस भेजना होगा. नोटिस में कहा जाना चाहिए कि चेक राशि का भुगतान प्राप्तकर्ता को नोटिस प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए.
कानूनी नोटिस में क्या रखें ध्यान
कोर्ट में मामला दर्ज कराने के लिए आपके पास ओरिजिनल चेक, बैंक द्वारा चेक रिटर्न करने का मेमो, लीगल नोटिस की प्रति, लीगल नोटिस भेजने की पोस्टल रसीद और अगर नोटिस के वापस आने की स्थिति में उसकी प्रति आपके पास होना चाहिए.
आपके द्वारा कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों के आधार पर चेक देने वालों को सम्मन जारी कर अदालत में बुलाया जाता है और उसके खिलाफ मामले की जानकारी दी जाती हैं.
जेल की सजा और जुर्माना भी
दोषी व्यक्ति को कोर्ट एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दो साल की सजा और चेक की राशि की दोगुनी राशि के जुर्माने या पेनल्टी अदा करने का आदेश दे सकती हैं.
इसी अधिनियम की धारा 143 ए के तहत ऐसा मामला दर्ज कराने के साथ ही अदालत मुकदमा दर्ज कराने वाले व्यक्ति के पक्ष में ये आदेश दे सकता है कि चेक की कुल राशि का 20 प्रतिशत राशि का भुगतान करने का आदेश दे सकता हैं. अदालत 20 प्रतिशत राशि का भुगतान करने का आदेश तभी देती है जब उसके लिए एप्लीकेशन पेश की जाती है.