दिल्ली MCD 'चेक बाउंस' मिलने के चलते पेमेंट सिस्टम में लाएगी बदलाव, क्या करें अगर आपको मिला चेक हो गया है बाउंस?
Delhi MCD Stops Accepting Cheques: हाल ही में दिल्ली नगर पालिका (Municipal Corporation Of Delhi) टैक्स पेमेंट सिस्टम में बदलाव करने जा रही है. MCD ने टैक्स पेमेंट लेने के लिए यूपीआई, डिमांड ड्रॉफ्ट और पे ऑर्डर आदि की सुविधा लाने जा रही है. 1 जुलाई से इन माध्यमों से दिल्लीवासी अपना प्रॉपर्टी टैक्स पे कर सकते हैं. वहीं, 30 जून से पहले अगर दिल्लीवासी अपना प्रॉपर्टी टैक्स उन्हें 10% की छूट भी दी जाएगी.
वहीं, दिल्ली MCD एक जुलाई से 'चेक' से पेमेंट लेने की सुविधा खत्म करने जा रही है. कारण 'चेक बाउंस' का निकलना, जिसके चलते कानूनी प्रक्रिया अपनाना पड़ता था. अब एक जुलाई से दिल्ली के लोग चेक से प्रॉपर्टी टैक्स पेमेंट नहीं कर पाएंगे. लेकिन अगर आपको किसी ने चेक बाउंस दिया है तो आप ये कानूनी प्रक्रिया अपना सकते हैं.
कैसे होता है चेक बाउंस?
चेक भरना आसान है लेकिन आपका चेक बाउंस होना आपको कानूनी मुश्किल में डाल सकता है. “चेक बाउंस” या “डिसऑनर्ड चेक” शब्द का उपयोग तब किया जाता है जब आपके द्वारा दिया गया चेक बैंक द्वारा भुगतान करने से इंकार कर दिया जाए.
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चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन अकाउंट में बैलेंस न होना या कम होना, सिग्नेचर बदलना, शब्द लिखने में गलती, अकाउंट नंबर में गलती, ओवर राइटिंग आदि को इसके प्रमुख कारण माना जाता है. इनके अलावा चेक की समय सीमा समाप्त होना, चेक कर्ता का अकाउंट बंद होना, जाली चेक का संदेह, चेक पर कंपनी की मुहर न होना और ओवरड्राफ्ट की लिमिट को पार करना आदि वजहों से भी चेक बाउंस हो सकता है.लेकिन जिसके नाम से आपने चेक दिया है वह व्यक्ति चेक बाउंस के लिए आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है.
कब होता है अपराध?
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 के अनुसार,अगर आपके बैंक अकाउंट में पर्याप्त पैसे नहीं है तो बैंक इस चेक को डिसऑनर कर देता है ऐसी स्थिति में यह एक अपराध का आधार हो सकता है. इस स्थिति में चेक प्राप्तकर्ता के पास यह अधिकार है कि चेक बाउंस हुए चेक को वह तीन महीने के भीतर चेक को फिर से पेश कर सकता है या कानूनी रूप से मुकदमा चला सकता है.
अगर चेक प्राप्तकर्ता दुबारा चैक लगाने की बजाए कानूनी मुकदमे की और बढ़ना चाहता है तो उसे चेक देने वाले को बैंक के “चेक रिटर्न मेमो” मिलने की तारीख से 30 दिनों के भीतर एक कानूनी नोटिस भेजना होगा. नोटिस में कहा जाना चाहिए कि चेक राशि का भुगतान प्राप्तकर्ता को नोटिस प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए.
कानूनी नोटिस में क्या रखें ध्यान
कोर्ट में मामला दर्ज कराने के लिए आपके पास ओरिजिनल चेक, बैंक द्वारा चेक रिटर्न करने का मेमो, लीगल नोटिस की प्रति, लीगल नोटिस भेजने की पोस्टल रसीद और अगर नोटिस के वापस आने की स्थिति में उसकी प्रति आपके पास होना चाहिए.
आपके द्वारा कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों के आधार पर चेक देने वालों को सम्मन जारी कर अदालत में बुलाया जाता है और उसके खिलाफ मामले की जानकारी दी जाती हैं.
जेल की सजा और जुर्माना भी
दोषी व्यक्ति को कोर्ट एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दो साल की सजा और चेक की राशि की दोगुनी राशि के जुर्माने या पेनल्टी अदा करने का आदेश दे सकती हैं.
इसी अधिनियम की धारा 143 ए के तहत ऐसा मामला दर्ज कराने के साथ ही अदालत मुकदमा दर्ज कराने वाले व्यक्ति के पक्ष में ये आदेश दे सकता है कि चेक की कुल राशि का 20 प्रतिशत राशि का भुगतान करने का आदेश दे सकता हैं. अदालत 20 प्रतिशत राशि का भुगतान करने का आदेश तभी देती है जब उसके लिए एप्लीकेशन पेश की जाती है.