Advertisement

Money Lenders के 'शायलॉक' जैसे रवैये से कर्जदारों को मिलेगा छुटकारा, राहत दिलाने के लिए SC सुनवाई को तैयार

सांकेतिक चित्र

राजकुमार संतोषी की चेक बाउंस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मनी लेंडर द्वारा शॉयलॉक रवैये को रेगुलेट करने के मुद्दे पर सहमति जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कर्ज में फंसे कर्जदारों को बचाने के लिए ऐसे मामलों पर कार्रवाई करने की जरूरत है.

Written By Satyam Kumar | Updated : July 28, 2024 4:45 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शायलॉक के रवैये को अपनाने वाले ऋणदाताओं के मुद्दे की जांच करने पर सहमति जताई है और कहा है कि वह कर्ज में फंसे कर्जदारों को बचाने के लिए ऐसे मामलों पर कार्रवाई करने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें फिल्म निर्माता राजकुमार संतोषी की चेक बाउंस से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान कहीं. शॉयलॉक विहेबियर का अर्थ ऐसे समझें कि कर्जदारों द्वारा ऋण चुकाने के बाद भी कर्जदाता कंपनी उस पर येन-केन-प्रकारेण ऋण बना ही रहता है जिसके चलते कर्जदाताओं को ब्याज के चंगुल से निकलना मुश्किल होता है. सुप्रीम कोर्ट ने अब इन्हीं पहलुओं पर गौर करने की बात कहीं है कि कैसे ये ऋण देनेवाली कंपनी चार्जेस बढ़ाती है, लेट फी कैसे जोड़ती है आदि आदि.

मनी लेंडर के शॉयलॉक रवैये कर्जदार आत्महत्या करने को मजबूर: Supreme Court 

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीटी रविकुमार और संजय करोल की पीठ ने कहा कि उनके सामने ऐसे मामले आए हैं, जहां तथाकथित दोस्ताना अग्रिम राशि करोड़ों रुपये तक पहुंच गई है.

Advertisement

अदालत ने कहा,

Also Read

More News

"हम ऐसे मामलों से बहुत चिंतित और दुखी हैं, जहां आम आदमी ऋण लेता है और शायलॉक के रवैये को अपनाने वाले ऋणदाताओं के कारण सड़कों पर आ जाता है कुछ मामलो में तो आत्महत्या तक कर लेता है."

कोर्ट ने ऐसे मामलों को विनियमित करने और कर्ज में फंसे असहाय कर्जदारों को बचाने पर सहमति जताई। शायलॉक शेक्सपियर की सबसे बड़ी नाटकीय रचनाओं में से एक, द मर्चेंट ऑफ वेनिस का एक पात्र है।

Advertisement

शीर्ष अदालत ने कहा,

"ऐसे मामलों में शर्म के बिना शाइलॉकियन रवैया जारी रहता है, और अक्सर, वास्तव में अग्रिम राशि चुकाने के बावजूद, उधारकर्ता को ब्याज के रूप में दोगुनी राशि या उससे अधिक का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाता है. धन उधार व्यवसाय कानूनों के दायरे में आने से बचने के लिए, कुछ ऋणदाता विवेकपूर्ण तरीके से (या चालाकी से?) निरंतर लेन-देन से बचते हैं और केवल ब्याज के लिए रुक-रुक कर बड़े ऋण देते हैं."

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में, प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता (फिल्म निर्माता राज कुमार संतोषी)  को अलग-अलग तिथियों और अलग-अलग तरीकों से 85 लाख रुपये का ऋण दिया है.

अदालत ने कहा,

"लाइसेंस के बिना ब्याज पर पैसा उधार देना और चेक या संपत्ति के शीर्षक विलेख के साथ ऐसे ऋण प्राप्त करना, अनिवार्य रूप से धन उधार के व्यवसाय का चरित्र है."

न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए भारत संघ और दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (जिसका प्रतिनिधित्व मुख्य सचिव कर रहे हैं) को इन कार्यवाहियों में पक्षकार बनाया और नोटिस जारी किया. अदालत ने  मामले को 23 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 50 लाख रुपये या उससे अधिक जैसी बड़ी राशियों से जुड़े मामलों में, धन उधार देने के कानूनों के प्रावधानों को दरकिनार करने के अलावा, महत्वपूर्ण कर चोरी भी शामिल हो सकती है.

न्यायालय ने आगे कहा कि पंजाब धन उधारदाताओं के पंजीकरण अधिनियम, 1938 के तहत परिभाषा में धन उधार देने के व्यवसाय के दायरे में चेक या संपत्ति के स्वामित्व के विलेख द्वारा सुरक्षित ब्याज के लिए धन उधार देने के मामले शामिल नहीं हैं. दूसरे शब्दों में, इस तरह की कार्रवाइयों को व्यवसाय बनाने के लिए, संबंधित व्यक्ति को इस प्रकृति के निरंतर लेनदेन को अंजाम देना चाहिए.