जेल में जातिगत भेदभाव बढ़ा रही राज्य नियमावली की हो जांच, मांग याचिका पर SC का फैसला कल
गुरूवार यानि कि कल सुप्रीम कोर्ट को उस याचिका पर अपना फैसला सुनाएगा जिसमें आरोप लगाया गया है कि देश के कुछ राज्यों की जेल नियमावली जाति के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देती हैं. याचिकाकर्ता ने दावा किया है राज्य के नियमों के अनुसार जेल में हर काम को किसी विशेष जातियों के लिए तय किया गया है. जैसे कि बंगाल जेल संहिता में खाना बनाने को लेकर किसी विशेष जाति को ही सौंपी गई है.
राज्य नियम के चलते जेलों में जातिगत भेदभाव
सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड की गई तीन अक्टूबर की वाद सूची के अनुसार प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ इस याचिका पर फैसला सुनाएगी. सर्वोच्च न्यायालय ने इस वर्ष जनवरी में केंद्र तथा उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों से याचिका पर जवाब मांगा था. अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील पर गौर किया कि इन राज्यों की जेल नियमावलियां जेलों के अंदर काम के आवंटन में भेदभाव करती हैं और कैदियों को रखने का स्थान उनकी जाति के आधार पर तय होता है.
इन राज्यों के जेल नियम का दिया हवाला?
याचिका में केरल जेल नियमों का हवाला दिया गया और कहा गया कि वे आदतन अपराधी और दोबारा दोषी ठहराए गए अपराधी के बीच अंतर करते हैं और कहते हैं कि जो लोग आदतन डाकू, सेंध लगाने वाले, डकैत या चोर हैं, उन्हें अलग अलग श्रेणियों में विभाजित किया जाए और अन्य दोषियों से अलग रखा जाए. इसमें दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल जेल संहिता में कहा गया है कि जेल में काम जाति के आधार पर किया जाना चाहिए, जैसे खाना पकाने का काम प्रमुख जातियों द्वारा किया जाएगा और सफाई का काम विशेष जातियों के लोगों द्वारा किया जाएगा. शीर्ष अदालत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से महाराष्ट्र के कल्याण की मूल निवासी सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका में उठाए गए मुद्दों से निपटने में सहायता करने को कहा था. पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील की इन दलीलों पर गौर किया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए मॉडल जेल मैनुअल के अनुसार राज्य जेल मैनुअल में किए गए संशोधनों के बावजूद, राज्यों की जेलों में जातिगत भेदभाव किया जा रहा है.
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