अपराध के संबंध में झूठी सूचना देना भी हैं अपराध, जानिए IPC की धारा 203 का प्रावधान
यह एक जमानती और असंज्ञेय अपराध है जिसमें अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. इस अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है.
यह एक जमानती और असंज्ञेय अपराध है जिसमें अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. इस अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है.
जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता में संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है.संविधान पीठ में जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर के साथ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना शामिल रहें.
अपराध की प्रकृति के अनुसार यदि पुलिस यथास्थिति 90 दिन या 60 दिन की निर्धारित समय सीमा के भीतर न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र/चार्जशीट दाखिल करने में असफल रहती है तो आरोपी द्वारा जमानत साधिकार मांगी जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने दो बेटों की हत्या के आरोपी पिता की सजा को बरकरार रखते हुए महत्वपूर्ण कानूनी व्यवस्था को स्पष्ट किया है.
यह धारा उन परिस्थितियों से संबंधित है, जहां कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि आरोपी द्वारा अपराध को अंजाम दिया है लेकिन वह व्यक्ति अपराधी को कानूनी सजा से बचाने के इरादे से साक्ष्य (Evidence) को गायब कर देता है या आरोपी को बचाने के लिए गलत सूचना देता है.
वर्ष 2003 में लखनऊ के तत्कालीन जेलर एसके अवस्थी ने आलमबाग थाने में अंसारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. ट्रायल के बाद इस मामले में निचली अदालत ने अंसारी को बरी कर दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था.
मामला लक्षद्वीप के sub-judge/chief judicial magistrate के खिलाफ शिकायत से जुड़ा है जिसमें पूर्व मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पर याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उनके समक्ष सूचीबद्ध एक केस में उन्होंने 2015 में जांच अधिकारी के बयान में हेरफेर की थी.
अवकाश के बाद आज सुप्रीम कोर्ट का पहला कार्यदिवस है और आज सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ मोदी सरकार द्वारा 8 नवंबर 2016 को की गयी नोटबंदी पर अपना फैसला सुनाएगी.
मामले में आगे जांच बढी तो जातिगत भेदभाव का खुलासा हुआ. जिसके अनुसार गांव में दो वॉटर टैंक हैं. इनमें से एक दलितों के लिए बना है, जिसका पानी पीकर लोग बीमार हो रहे थे. जांच करने पर पता चला कि टैंक में इतना मानव मल मिलाया गया कि पानी पीला हो चुका था.
चोरी, लूट और डकैती यह तीनो अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है. यानी इन तीनों अपराधों में पुलिस के द्वारा आरोपीयों को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है. और जमानत अदालत द्वारा ही दी जा सकती है.
कैदियों की रिहाई को लेकर देश के अलग अलग राज्यों द्वारा अलग अलग जेल मैनुअल (Jail Manual) या जेल नियमावली तय की जाती है जिसके द्वारा दोषियों के अच्छे व्यवहार के लिए हर महीने कुछ दिनों की छूट की अनुमति दी जाती है.केन्द्र इस मामले में केवल दिशा निर्देश दे सकता है.
जब कोई भारतीय किसी विदेशी से भारत के बाहर शादी करता है और चाहता है कि शादी भारत में उसे कानूनी मान्यता मिले. ऐसी स्थिति में यह अधिनियम एक विदेशी के साथ विवाह की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के साथ ही अपने पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह के अधिकार को बनाए रखता है.
जमानती और गैर-जमानती अपराधों में मूल अंतर यही है कि जमानती अपराध में जमानत, आरोपी का अधिकार है और गैर-जमानती अपराध में जमानत अदालत के निर्णय पर निर्भर करती है.
किसी व्यक्ति के विश्वास का आपराधिक हनन करने वाले अपराधी को अमानत में खयानत करने के लिए IPC की धारा 406 में उसे दोषी घोषित किया जाता है. लेकिन इसके लिए अलग अलग पदों के अनुसार भी सजा का प्रावधान IPC की धारा 406, 407, 408 और 409 में अलग अलग किया गया है.
सीआरपीसी (CrPC) या दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में कई ऐसी धाराएं है जिसके तहत इस तरह से गिरफ्तारी हो सकती है.पुलिस को यह पूर्ण अधिकार है कि वह विश्वशनीय सूचना के आधार किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वारण्ट के गिरफ्तार कर सकती है
कोई भी आम नागरिक सुप्रीम कोर्ट से जानकारी पाने के लिए registry.sci.gov.in/rti_app पोर्टल से आवेदन कर सकता हैं. पोर्टल से जानकारी हासिल करने के लिए आवेदनकर्ता को लॉगिन आईडी बनाने के बाद फॉर्म भरना होगा.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण द्वारा मेंशन की गयी जनहित याचिका पर सुनवाई की सहमति दी है. सीजेआई ने कहा कि वे इसमें प्रशासनिक आदेश भी जारी करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में हैदराबाद के नेहरू जूलॉजिकल पार्क के लिए अधिग्रहित की गयी भूमि के मालिकों को मुआवजा देने के आदेश दिए है. पार्क के विस्तार के लिए 1981 में जमीन का अधिग्रहण किया गया था.