किसी भी मुकदमे में अदालत एक निष्पक्ष मध्यस्थ की भूमिका निभाती है.
Source: my-lord.inइसलिए अगर दो पक्षों के बीच के वाद में अगर समझौता होता है, तो अदालत उस मुकदमे को खारिज करने की इजाजत देती हैं.
Source: my-lord.inवहीं, कुछ मामले में ऐसे हैं जिसमें अदालत समझौता होने पर भी मुकदमे को समाप्त करने की इजाजत नहीं देती है.
Source: my-lord.inयहां कॉन्सेप्ट आता है, समझौतावादी और गैर-समझौतावादी अपराध का,
Source: my-lord.inगैर-समझौतावादी अपराध में उन कृत्यों को शामिल किया जाता है, जिसका प्रभाव बेहद व्यापक हो.
Source: my-lord.inकहें तो अदालत नाबालिग से दुष्कर्म यानि पॉक्सो मामले में समझौता को मान्यता नहीं देती है.
Source: my-lord.inसाथ ही दहेज प्रताड़ना, गैर-इरादतन हत्या, हत्या, जालसाजी, अपहरण और फिरौती के मामलों में समझौता मान्य नहीं होता है.
Source: my-lord.inअदालत इन मामलों में दोनों पक्षों के सुलह को मान्य करने से इंकार करती है.
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