बालिग होने तक या अठारह साल से कम उम्र के बच्चे की कानूनी गार्जियनशिप सौंपने को कस्टडी कहा जाता है.
Image Credit: my-lord.inअदालत बच्चे की कस्टडी देने में बच्चे की भविष्य व उसके पालन पोषण का ध्यान रखती है. अदालत सबसे पहले ये तय करती है कि दोनों गार्जियन में से बच्चे का पालन बेहतर ढंग से कर सकती है.
Image Credit: my-lord.inअदालत ने बच्चे की कस्टडी देने या गार्जियन तय करने में कुछ पहलुओं का ध्यान रखती है.
Image Credit: my-lord.inभारत में अलग-अलग धर्मों में बच्चे की कस्टडी को लेकर अलग प्रावधान है. हिंदू धर्म में हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के अनुसार बच्चों की कस्टडी दी जा सक
Image Credit: my-lord.inजैसे अगर बच्चा पांच साल से कम उम्र का है, तो उसकी कस्टडी उसके मां को दी जाएगी.
Image Credit: my-lord.inअगर बच्चे की उम्र 9 साल या उससे अधिक है तो अदालत बच्चे से उसकी इच्छा जाननी चाहती है कि वह किसके साथ रहना चाहता है.
Image Credit: my-lord.inअगर बेटा बड़ा है तो उसकी कस्टडी उसके पिता को मिलती है.
Image Credit: my-lord.in18 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों की कस्टडी अक्सर उसके मां को दी जाती है. हालांकि कुछ परिस्थितियों में बच्चियों की कस्टडी पिता को भी दी जा सकती है.
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