Contempt of Court कार्यवाही के लिए अटॉर्नी जनरल की सहमति क्यों जरूरी है?

Satyam Kumar

Image Credit: my-lord.in | 21 Apr, 2025

चार बार के बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ अदालत की अवमानना चलाने की मांग की गई है. इसके लिए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को चिट्ठी भी लिखी गई है.

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ऐसे में सवाल उठता है कि अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए महान्यावादी (Attorney General) की इजाजत क्यों पड़ती है? आइये जानते हैं पूरा मामला...

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अदालत की अवमानना का मामले चलाने से जुड़े प्रावधानों का जिक्र Contempt of Court की धारा 15 में है,

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धारा 15(1) सामान्य रूप से सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा आपराधिक अवमानना का संज्ञान लेने की परिस्थितियों को रेखांकित करती है.

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यह धारा 1(a) उच्च न्यायालयों को अपने स्वयं के प्रस्ताव पर या धारा 1 (b) किसी व्यक्ति द्वारा महाधिवक्ता (Advocate General) की सहमति से या 1 (c)दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए हाई कोर्ट के लिए नामित विधि अधिकारी के प्रस्ताव पर मुकदमा चलाने की अनुमति देता है.

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धारा 15(1)(b) के अनुसार, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट न केवल अपने स्वयं के प्रस्ताव पर या महाधिवक्ता के प्रस्ताव पर,

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बल्कि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए प्रस्ताव पर भी आपराधिक अवमानना का संज्ञान ले सकता है, बशर्ते कि उन्हें महाधिवक्ता की लिखित सहमति प्राप्त हो.

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इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने आज निशिकांत दुबे के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए अटॉर्नी जनरल के पास जाने के निर्देश दिए हैं.

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चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट से जुड़ा है, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ने भी 15 (1)b के तहत ही अटॉर्नी जनरल को चिट्ठी लिखा गया है, अगर हाई कोर्ट से जुड़ा होता तो एडवोकेट जनरल को चिट्ठी लिखी जाता.

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