काजी कोर्ट -शरिया कोर्ट को कानूनी दर्जा नहीं: Supreme Court

Satyam Kumar

Image Credit: my-lord.in | 29 Apr, 2025

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि काज़ी की अदालत, दरुल क़ाज़ीयात की अदालत, शरिया अदालत आदि, किसी भी नाम से, कानून में मान्यता प्राप्त नहीं हैं.

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दूसरे शब्दों में कोई भी धार्मिक न्यायालय जैसे कि काजी की अदालत, दारुल काजा या शरीयत अदालत को कानून में कोई मान्यता नहीं है. अगर व्यक्ति के ऊपर है कि वे इसे मानना चाहते है या नहीं. अदालत ने कहा कि इनका मनौवैज्ञानिक प्रभाव है.

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इन अदालतों के आदेश यानि फतवा जारी कर दिए जाते हैं और फतवा की हमारे संवैधानिक ढांचे में कोई कानूनी स्थिति नहीं है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि फतवे जारी किए गए हैं और जारी किए जा रहे हैं.

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, इनके द्वारा जारी कोई भी घोषणा या निर्णय किसी पर बाध्यकारी नहीं है और किसी भी दंडात्मक उपाय से लागू नहीं कराया जा सकता.

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शीर्ष अदालत ने गौर किया कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, देशभर में एक न्यायिक प्रणाली का नेटवर्क स्थापित करने पर जोर दे रहा है. हालांकि, इस प्रकार की अदालतों की स्थापना का उद्देश्य भले ही प्रशंसनीय हो, लेकिन कानूनी रूप से इनकी कोई वैधता नहीं है.

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वहीं, फतवा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह केवल एक राय है, जिसे केवल एक विशेषज्ञ ही देने की उम्मीद की जाती है. यह कोई डिक्री नहीं है, न ही अदालत, राज्य या व्यक्ति पर बाध्यकारी है.

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यह एक अनौपचारिक न्याय प्रणाली है जिसका उद्देश्य पार्टियों के बीच सौहार्दपूर्ण समझौता लाना है. संबंधित व्यक्तियों के विवेक पर है कि वे इसे स्वीकार करें, अनदेखा करें या अस्वीकार करें.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अजनबियों द्वारा व्यक्तिगत मामलों पर फतवे जारी करने से अपूरणीय क्षति हो सकती है और साथ ही इसमें मानवाधिकारों का उल्लंघन होने के चांसेस है.

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