हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ऑनर किलिंग मामले में 11 लोगों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है. इस मामले में दो पुलिस अधिकारियों को भी सजा हुई है.
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन अधिकारियों ने अपने कार्यों की अनदेखी की, जिससे पीड़ित को कार्रवाई के लिए हाई कोर्ट जाना पड़ा, तब जाकर इस मामले की जांच सीबीआई को दी गई.
Image Credit: my-lord.inहालांकि, निचली अदालत ने भी पुलिस अधिकारियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे हाई कोर्ट ने बाद में संशोधित किया. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को भी बरकरार रखा है.
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के अपनी ड्यूटी नहीं पूरी करने पर आईपीसी की धारा 217 के प्रावधानों का उल्लंघन पाया है. वहीं बीएनएस में यह धारा 255 है. आइये जानते हैं कि आईपीसी की धारा 217 में क्या प्रावधान है...
Image Credit: my-lord.inभारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 217 एक लोक सेवक द्वारा कानून के निर्देशों की जानबूझकर अवज्ञा करने से संबंधित है जिसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को दंड से बचाना है.
Image Credit: my-lord.inआईपीसी की धारा 217 में यह व्यवस्था है कि यदि कोई लोक सेवक जानबूझकर कानून के निर्देशों की अवज्ञा करता है जिससे किसी व्यक्ति को कानूनी सजा से बचाया जा सके या कम सजा मिले, तो उसे दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकेगा.
Image Credit: my-lord.inधारा 217 में 'जानबूझकर' और 'संभावना जानते हुए' दोनों ही परिस्थितियों में दंड का प्रावधान है,
Image Credit: my-lord.inजिसका अर्थ है कि यदि लोक सेवक को पता था या उसे पता होना चाहिए था कि उसके कृत्य से किसी को सजा से बचाया जा सकता है, तो वह दोषी पाया जा सकता है.
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट ने धारा 217 को विस्तारित करते हुए कहा कि यह नियम लोक सेवकों को कानून के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए उत्तरदायी बनाती है, ताकि किसी शख्स को अनुचित लाभ न मिले.
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