सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को मादक पदार्थ तस्करी के मामले में बरी कर दिया, जिसमें पाया गया कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई कानूनी सबूत नहीं है जिससे पता चले कि रेलवे पार्सल द्वारा दूसरे आरोपी द्वारा ले जाए जाने वाले प्रतिबंधित पदार्थ की आपूर्ति अपीलकर्ता द्वारा की गई थी या वह इसके लिए किसी साजिश में शामिल था.
Source: my-lord.inजस्टिस अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह भी नोट किया कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत आरोपी के बयान पर भरोसा किया था, जो सबूतों में स्वीकार्य नहीं था और इसे तोफन सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य (2021) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर सबूतों में नहीं पढ़ा जा सकता था.
Source: my-lord.inपीठ ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो दर्शाता हो कि दूसरे आरोपी द्वारा रेलवे पार्सल के जरिए ले जाए जाने वाला प्रतिबंधित सामान अपीलकर्ता द्वारा या उसकी ओर से दूसरे आरोपी तक पहुंचाया गया था. अपीलकर्ता से किसी भी तरह की आपत्तिजनक सामग्री बरामद नहीं हुई है.
Source: my-lord.inमामले में नारकोटिक्स विभाग ने गुप्त सूचना के आधार पर 21 दिसंबर, 2013 को एक जांच शुरू किया. इसने जसविंदर सिंह को पकड़ा जिसने स्वीकार किया कि उसके पास रैनबैक्सी कंपनी द्वारा निर्मित पेंटाज़ोसीन (फोर्टविन इंजेक्शन) के 30 कार्टन की खेप मिली थी.
Source: my-lord.inएनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत उसका बयान दर्ज किया. उसने स्वीकार किया कि वह पटना से दवाइयां खरीदता था और उन्हें उत्तर प्रदेश के लखनऊ में बेचता था. आरोपी ने बताया कि उसने कई मौकों पर अपीलकर्ता और दूसरे आरोपी से फोर्टविन इंजेक्शन खरीदे हैं.
Source: my-lord.inआरोपी के बयान के आधार पर जांच एजेंसी ने अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया था,
Source: my-lord.inजिसे ट्रायल कोर्ट ने दस साल जेल की सजा सुनाई. धारा 22(सी) के तहत दंडनीय अपराध के लिए अपीलकर्ता को 10 साल के कठोर कारावास और 1,00,000 रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई.
Source: my-lord.inहाईकोर्ट ने भी इस मामले को बरकरार रखा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है.
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