मां या पिता, बच्चे की कस्टडी पाने में पहला हक किसका होगा?

Satyam Kumar

Image Credit: my-lord.in | 09 Apr, 2025

बच्चे की कस्टडी को लेकर माता-पिता के बीच तनाव की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

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पैरेंट कस्टडी की मांग को लेकर अदालत का रूख करते हैं. वहीं अदालत वैधानिक नियमों व उस मामले की परिस्थितियों को विचार में रखकर फैसला सुनाते हैं

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बच्चे की कस्टडी यानि गार्जियनशिप को लेकर हिंदू अल्पवयस्कता एवं संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6(ए) में कायदे-कानून बनाए गए है. आइये जानते हैं कि यह धारा बच्चे की कस्टडी को लेकर क्या कहती है...

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हिंदू अल्पवयस्कता एवं संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 में नाबालिग बच्चे के नेचुरल गार्जियन के पहलुओं को परिभाषित करती है.

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सेक्शन 6 के अनुसार, नाबालिग लड़का या अविवाहित लड़की के लिए पहले पिता और उसके बाद माता को प्राकृतिक अभिभावक (Natural Guardian) माना गया है.

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वहीं, अधिनियम की धारा 6(a) के प्रावधान के अनुसार पांच साल से कम आयु के नाबालिग बच्चे की कस्टडी मां के पास ही होगी.

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धारा 6(क) के प्रावधान के अनुसार, पाँच वर्ष से कम आयु के नाबालिग की हिरासत आमतौर पर माता के पास रहती है. विवाहित लड़की के मामले में, उसका पति ही उसका प्राकृतिक अभिभावक होता है.

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यदि नाबालिग अवैध लड़का या अविवाहित लड़की है, तो पहली गार्जियन मां होती है और उसके बाद पिता उसका गार्जियन होता है. अगर पेरैंट में से कोई हिन्दू धर्म छोड़कर सन्यासी बन गया है, तो वह बच्चे का अभिभावक नहीं बन सकता.

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पढ़ने के लिए धन्यवाद!

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