राहुल गांधी ने सावरकर के खिलाफ ऐतिहासिक एविडेंस देने के लिए अदालत से डिफेमेशन ट्रायल को समरी से समन मामले में तब्दील करने की मांग की थी.
Image Credit: my-lord.inमानहानि मामले में पुणे अदालत ने राहुल गांधी की मंजूरी दे दी है. अदालत ने फैसले में कहा कि संक्षिप्त सुनवाई में विस्तृत साक्ष्य और क्रॉस-परीक्षा संभव नहीं है, इसलिए नियमित सुनवाई उचित है.
Image Credit: my-lord.inअदालत ने समरी ट्रायल को नियमित मामलों की तरह सुनवाई करने के लिए सहमति जताई है. आइये जानते हैं कि समरी (Summary Trial) और समन ट्रायल (Summon Trial) में क्या अंतर है...
Image Credit: my-lord.inजमानती मामले (Summary Trial) वे हैं जिनमें 2 साल तक की सज़ा हो सकती है, जबकि गैर-जमानती मामले (Summon & Warrant Trial) वे हैं जिनमें 2 साल से ज़्यादा की सज़ा हो सकती है.
Image Credit: my-lord.inसमरी ट्रायल मामूली अपराधों के लिए एक सरलीकृत और त्वरित प्रक्रिया है, जो मजिस्ट्रेट द्वारा चलाया जाता है और यह जमानती मामलों का ही एक हल्का रूप है.
Image Credit: my-lord.inसमन ट्रायल में गंभीर अपराधों से संबंधित और कठोर सज़ा वाले गैर-जमानती मामले (वारंट केस) की सुनवाई होती है.
Image Credit: my-lord.inदंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अध्याय XXI के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा समरी ट्रायल के रूप में विचारणीय मामले, "समन्स केस" का हल्का रूप है.
Image Credit: my-lord.inइसलिए जिला अदालतों में आने वाले मामलों को समन्स केस (2 साल तक की कैद) और वारंट केस (2 साल से अधिक कैद) में वर्गीकृत किया जाता है.
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